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________________ धृतराष्ट्र की चिन्ता " द्रौपदी ने अपने विखरे हुए केशों से अपना सारा मुह ढक लिया है मोर प्रसू बहाती हुई युधिष्ठिर का अनुसरण कर रही है ।" F L ९१ यह सुन कर धृतराष्ट्र की आशका और चिन्ता पहले से भी अधिक प्रबल हो उठी । उन्होने उत्कठा से पूछा - " और नगर वासी क्या कह रहे है ?” "महाराज ! लोगो के नेत्रो से आसू और कण्ठ से कौरवो के लिए धिक्कार के शब्द निकले है । कह रहे हैं कि धृतराष्ट्र ने अपने बेटो को राज्य देने के लिए पाण्डवो को निकाल दिया। कुछ लोग कह रहे हैं कि कुरुवश के वृद्धो को धिक्कार है जिन्होने दुर्योधन और दुशासन के कहने से यह अत्याचार किया । इसी प्रकार कोई कुछ और कोई कुछ कर रहा है देखो नीले आकाश में बिजली कौध रही है । और भी कितने ही अनिष्टकारी लक्षण हो रहे हैं ।" - विदुर जी ने कहा । को विदुर और धृतराष्ट्र की यह बाते नारद जी आ निकले । ' उन्होंने घृतराष्ट्र इस पाप के कारण चौदह वर्ष बाद कौरवो भविष्य के जानकारो का यही विचार है। कर नारद जी तो चले गए और धृतराष्ट्र और उसके साथी नारद की यह भविष्यवाणी सुन कर भय भीत हो प्राचार्य द्रोण के पास गए और उनके आगे गिड गिड़ाते हुए बोले - "आचार्य जी ! जब चारों ओर से हम पर विपत्तियाँ टूट पडने की आशका है, तब हम आप की शरण आये हैं । यह सारा राज्य आप का है, हम आप ही की शरण हैं, आप विद्यावान, दयावान और बुद्धिमान है, आप हमे शरण लीजिए । आप कभी हमारा साथ न छोडे । ” हो रही थी कि कही से बताया कि दुर्योधन के का नाश हो जायेगा | यह भविष्य वाणी सुना इस पर दोणाचार्य बोले - "पाण्डव अजेय है, वह न्यायवत एवं गुणवान है, यह जानते हुए भी चूंकि तुम लोग मेरी शरण आ गए हो, इसलिए में तुम्हे ठुकरा नही सकता । जहा तक मुझ से चन पडेगा में तुम्हारी प्रेम पूर्वक हृदय से सहायता करूगा ।' परन्तु होनी को कौन टाल सकता है । तेरह वर्ष उपरान्त पाण्डव बडे
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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