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________________ * अष्टम परिच्छेद * Xधृतराष्ट्र की चिन्ता | जब पाण्डव परिवार सहित वन को जाने लगे तो, उनको देख की इच्छा से हस्तिनापुर के नर-नारी सडको पर निकल आये इतनी भीड़ थी कि सडको पर चलना असम्भव था, इसलिए कु लोग ऊचे भवनो की छतों और छज्जो पर खडे थे। महाराजाधिरा युधिष्ठिर जिन की सवारी सेना सहित बड़ी सज धज से निकर करती थी, उस दिन साधारण वस्त्र पहने पैदल अपने परिवार सहि जा रहे थे, यह देख कर लोग हा हा कार करने लगे। कुछ लोग की आंखो से अश्रुधार वह रही थी, कुछ 'हाय-हाय' कर रहे और कुछ 'छि-छि.' करके कौरवो को धिक्कार रहे थे। उन अत्याचार पर सारा नगर क्षुब्ध था। अन्धे धृतराष्ट्र ने विदुर को बुला कर पूछा-"विदुर ! पाग के बेटे अपने परिवार सहित कसे जा रहे हैं ? मैं अन्धा हूं, दे नहीं सकता तुम्ही बताओ कैसे जा रहे है ?" विदुर जी बोले-"कुन्ती पुत्र युधिष्ठिर ने कपड़े से मुख ढा रक्खा है। भीमसेन अपनी दोनों भुजायों को निहारता, अजु अपने हाथ मे कुछ बालू लिए उसे विखेरता, नकुल और सहद अपने शरीर पर धूल रमाये हए क्रमशः युधिष्ठिर के पीछे जा रहे है
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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