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शाम्ब कमार
५२३ दोनों मक्खन ले लो-कोई मक्खन ले लो" की 'प्रावाज लगाते हुए बाजार में जा निकले।
घूमते-घामते जब यह दम्पत्ति शाम्ब कुमार के महल के 'पागे से "मक्खन ले लो" की आवाज लगाते हुए निकला. किमी ने शाम्ब कुमार को भी इसकी सूचना दी। इस विचित्र दम्पत्ति की बात सुनकर वह भी महल पर खडा होकर देखने लगा । जाम्बवती के पाडशी स्प पर वह मुग्ध हो गया और महल से उतर पाया। सड़क पर पाकर उसने पुकारा-"ओ ग्वालिन क्या वेचती है ?"
+"मक्खन बेचती हूँ।" "मक्खन ही और कुछ नहीं।" यह सुनते ही वह मेंप सी गई । "ला इधर, देखें मक्खन कैसा है।'
ग्वालिन शाम्ब कुमार के पास चली गई, साथ ही वृद्ध भी। शाम्ब कुमार ने उसकी मटकी नीचे झुका ली, पर दृष्टि उसकी नयनों पर जमा दीं। भूखी नजरों से उसे देखता रहा।" है तो बडी सुन्दर उस के मुख से निकला । फिर बोला-"चल महल में, ग्वालिन बोली"नहीं श्राप को लेना है तो यहीं ले लीजिए।" ___"महल में चल, फिर बात करना। हम तुझे प्रसन्न कर देंगे।" शाम्भ कुमार ने लोभ दिया, पर अद्भुत ग्वालिन न मानी। उसने कहा-मेरे पतिदेव मुझे किसी के घर नहीं जाने देते।"
तभी वृद्ध ग्वाला बोल उठा-"नहीं, नहीं, यह महल में नहीं जायेगी। जानते हो मैं इसी लिए इसके साथ साथ रहता हू।"
शाम्ब कुमार ने वृद्व पर एक दृष्टि डाली और हसकर कहा-"मौत का तो परवाना आने वाला है, ओर इस अलवेली अल्हड ग्वालिन पर मण्डराया फिरता है । बूढे जरा लज्जा कर, अरे यह तो किसी युवक के काम की है।"
राजा होकर ऐसी बात करते लज्जा नहीं आती।' वृद्ध ने बिगड कर कहा ।
"लज्जा तो तुझे आनी चाहिए । जो इस कलि को अपने बूढी हड़ियो ___ +नवनीत के स्थान पर गोरस का भी वर्णना पाया जाता है । त्रि०