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जैन महाभारत
नमसोम रहा है। अरे इस पर दया कर । किसी हम जैसे को सौंपकर माना।" निर्लज्जतापूर्ण शब्द कहकर शाम्ब कुमार हसने लगा।
'माता दे रे मुर्ख । तुझे दया नहीं आती । तू कौन होता है मामीच में आन वाला। मक्खन लेना हो तो ले, वरना पीछा
।' मालिन ने किटक कर कटा। "जिना तग तप है, उतना ही बस.. • शाम्ब कुमार ने कहा।
ग्वालिन 'यागे बढने लगा, तभी शाम्ब कमार ने अपने एक सेवक को प्रादेग दिया -- ''ग्वालिन को महल में ले चलो।"
वक ने बालिन का पकड़ लिया और वह उसे महल में खींच कर ने चला । बद्ध पाई पीछे त्राहिमाम्, त्राहिमाम्य करता हुआ चला।
गल ग पह वन पर शाम्ब कुमार ने सेवक को चले जाने का था। दिया पार बृत का सम्बोधित करके दुत्कार कर बोला--'श्री बुडे । तू या कहाँ सिर पर चढा आता है। बाहर जा ग्वालिन है कोई पण तो नती, कोई रत्न तो नहीं लगे इसमें जो मैं छुडा लू गा।'