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'महाभारत
रानी कुमार ही को एक टक देख रही थी । उसने कहा - "कुमार ! तुम्हारे आने से मेरे हृदय को कितनी शांति मिली है, बस मै ही जानती हूँ ।"
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" आपको शान्ति मिले तो मैं, माता जी ! हर समय आपकी सेवा में उपस्थित रह सकता हूं । पर पहले मैं आपके लिए किसी अन्य आयुर्वेद शास्त्र के ज्ञाता विद्वान वैद्य का प्रबन्ध कर दू' । ताकि रोग का तो पता चले ।" कुमार ने हाथ जोड़ कर कहा ।
" कुमार ! वैद्यों की खोज मत करो । मेरा रोग असाध्य नहीं है । तुम ही मेरी दवा कर सकते हो ।" कनकमाला ने कहा ।
"तो फिर आज्ञा दीजिए। आपकी सेवा के लिए मैं तत्पर हूँ । कुमार बोला- आपके लिए यदि मेरे प्राणो की भी आवश्यकता हो तो वह भी मैं प्रसन्नता पूर्वक दे सकता हूँ ।"
रानी ने सभी दास दासियो को वहां से चले जाने का आदेश दिया जब वे सभी चले गए तो कुमार ने पूछा
"अब आप मुझे आज्ञा दीजिए कि आप के स्वास्थ्य के लिए मैं क्या कर सकता हूँ ।"
रानी तुरन्त उठ बैठी और बोली - "बस मेरी दवा तुम्ही हो।"
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कुमार कुछ न समझ पाया। वह बोला - " पर मैं तो कहीं नहीं गया, मैं ही आपकी औषधि हॅू तो फिर समझ लीजिए कि आप स्वस्थ हो गई । मैं तो अहर्निश आपके पास उपस्थित रह सकता हूँ | मैं अपनी सेवा से अपनी मां को रोग रहित कर पाऊं तो अहो भाग्य ।"
" कुमार तुम यदि मुझे स्वस्थ देखना चाहते हो तो मेरी सेज पर आओ ।" रानी बोली ।
कुमार सेज पर बैठ गया ।
"तुम मुझ से प्यार करो ।" रानी ने कहा ।
"मां । यह आप क्या कह रही हैं ।" कुमार आश्चय चकित बोला ।
रानी ने तुरन्त उसे अपने अंक की ओर खींचते हुए कहा - "भोले कुमार ! बारम्बार मां कह कर मेरी आशाओं पर तुषारापात मत करो मेरे हृदय के स्वामी हो। तुमने मेरे मन को मोह लिया है । तुम्हारे
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