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प्रद्युम्न कुमार
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कर दिया गया। जिस ने आकर कोई सवाल किया राजा ने उसे प्रसन्न कर दिया। बारहवें दिन नप तथा परिवार के अन्य लोगों ने मिल कर पण्डितों की इच्छानुसार बालक को प्रद्युम्न कुमार का नाम दिया। ' जिस प्रकार अकुर धीरे धीरे विकसित होकर पौधे का रूप धारण करने लगता है, या जिस प्रकार कली धीरे धीरे पुष्प का रूप धारण करने लगती है, इसी प्रकार प्रद्य म्न कुमार विकसित होने लगा। अपने घर पर तो सभी को आदर मिलता है, पर जिसे पर घर में मी आदर मिले वास्तव में वह ही पुण्यवान होता है।
इधर रुक्मणि का रोते रोते बुरा हाल हो गया । वह दहाड़े मार कर रो रही थी और बार बार कहती कि मेरा शशि समान लाल कहां गया। उसे कौन ले गया। वह अपने दास दासियों को ममोड़ झमोड़ कर पूछती बताओ कहाँ गया मेरा लाल ? उसे पृथ्वी खा गई या आकाश ले उड़ा । तुम नहीं जानते तो और कौन जानता है । यहां कौन आया था ? पर किसी को कुछ ज्ञात हो तो वह बतावे भी। सभी मौन थे, उनकी आँखों से भी अश्रु बिन्दु मरने लगे। तब रुक्मणि सोचती"मैंने कौन से पाप किए हैं जिन का मुझे यह फल भागना पड़ रहा है कि मेरा लाल ही मेरी गोदी से चला गया। इस से तो अच्छा था कि मैं जन्म होते ही मर जाती । मैं श्री हरि जैसे महाबली की पत्नी ही न बनती तो अच्छा था । निपूती का तो कोई भी श्रादर नहीं करता। मैं तो पुत्रवती होकर भी बाम समान ही हो गई। आखिर मैंने किस के साथ अन्याय किया है, किस जीव को सताया है, किस को हत्या की है, किस के बालक को हानि पहुंचाई है ? जिस के परिणाम स्वरूप मुझे अपने नवजात शिशु विछोह सहन करना पड़ रहा है अब मैं क्या करू गी । श्रोह मैं ने बेकार ही पुत्र की कामना की ? अब मुनिवर की भविष्यवाणी का क्या होगा? अब मेरी क्या दशा होती ? मेरा जीवन कैसे चलेगा?"--इसी प्रकार की कितनी हो बातें वह सोचती और अश्रुपात करती रहती । श्रीकृष्ण को जब पुत्र के हर लिए जाने का-समाचार प्राप्त हुआ, वे तुरन्त महल में आये । उन्होंने कर्मचारियों को तुरन्त पुत्रका पता लगाने का आदेश दिया। सेना अधिकारी को बुलाकर आदेश दिया कि चारों ओर बस्ती, नगर, उपवन, वन; पहाड़ सभी छान मासे