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. जैन महाभारत
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जहां कहीं भी हो, पुत्र को खोज कर लाओ। फिर वे अन्त पुर में आये।
रुक्मणि ने उन्हे देखते ही रो कर कहा-"हाय ! मैं आप के राज्य में ही लुट गई । आप के महल में से ही मेरा लाल चुरा लिया गया ?'
श्रीकृष्ण ने धैर्य बधाते हुए कहा-"प्रिये । घबराओ नहीं मैं पृथ्वी का कोना कोना छनवा दूगा । जैसे भी होगा पुत्र का पता लगाऊगा।'
उसी समय अनायास ही नारद जो भी आ गए। उन्होंने जो रुदन सुना तो पूछ बैठे-~~'पुत्र जन्म के उत्सव पर यह चीत्कार कैसा ?"
पुत्र हर लिया गया है, मुनिवर ।' बात सुनते ही पहले तो मुनिवर ने भी आश्चर्य प्रकट किया । फिर शाँत हो गए। श्री कृष्ण ने पूछा-'कुछ आप ही बताइये ऋषि जी । बालक कहां गया। उसका क्या हुआ?" ___ नारद जी ने कहा-"आप विश्वास रक्खें वह पुण्यवान बालक है, उसे कोई नहीं मार सकता । वह जहां भी होगा सकुशल होगा और अापको अवश्य ही मिलेगा। मैं भी उसकी खोज करूंगा और आपको सूचना दूगा।"
फिर उन्होंने रुक्मणि को सांत्वना देते हुए कहा-"तुम इतनी व्याकुल मत हो । विश्वास रक्खो वह सकुशल है। तुम्हे अवश्य ही मिलेगा। मैं उसकी खोज करने निकल रहा हूँ। हरि की पत्नी को इस प्रकार की व्याकुलता शोभा नहीं देती।"
* प्रद्युम्न का पूर्वभव* इतना कहकर नारद जी वहाँ से पूर्व महाविदेह क्षेत्र में स्थित सीनंधर तीर्थङ्कर के पास पहुँचे । उन्हें यथा विधि वंदना कर पूछने लगे, भगवन् ! भरत क्षेत्र के यदुवंशो द्वारिकाधीश श्री कृष्ण की पटरानी रुक्मणि का पुत्र इस समय कहाँ है, उसे कौन ले गया और वह अपने माता पिता को मिलेगा या नहीं ? कृपा करके बताइये।
सीमन्धर स्वामी ने कहा हे नारद | उस बालक को उसके पूर्व जन्म का वैरी-धूमकेतु नामक देव छल पूर्वक वैताढयगिरि पर्वत की टंक