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________________ ४४४ •rmirr. जन महाभारत को ससार की कोई भी शक्ति परास्त नहीं कर सकती । अन्त में आप की ही विजय होगी और तीन खण्ड का राज्य आप ही के कुल को मिलेगा।" मुनिवर की वाणी सुनकर सभी यादवों को अपार हर्ष हुआ, उन्होंने मुनिवर को वन्दना की और आगे बढ़ गए। सौराष्ट्र मे रत्नागर तट पर जाकर सार्थ (काफले) ने डेरा डालदिया। वहीं सत्यभामा की कोख से भानु और भामर पुत्रों ने जन्म लिया। सारे यादवा ने हर्ष मनाया। यात्रा मे ही नाच गान से शिशु जन्म का अभिनन्दन किया। पश्चात् कोष्टुकी नेमित्तिक के कथनानुसार श्री कृष्ण ने तीन दिन तक घोर तप किया, जिसके फल स्वरूप तीसरी रात्रि मे लवण समुद्र का अधिष्ठायक सुस्थित(लवराठी) देव उनके सामने अवतरित हुआ और उसने उन्हे पाँचजन्य शंख और कौस्तुभमणि रल ओर वलदेव को सुघोष नामक शंख तथा दिव्य रत्नमाल दिए और पूछा--"कहिए | आपने कैसे याद किया ?" ___ "तुम हमारी दशा से कदाचित् परिचित होगी। हम शौरीपुर छोड़ आये। अब यहां आकर बसने का निश्चय कर लिया है । अतएव हमे उचित साधन चाहिए।" श्री कृष्ण बोले । उसने कहा-"आप निश्चित रहे । मैं इन्द्र से भेंट करके सारा प्रबन्ध कर दूगा।" उसने अपने वायदे के अनुसार इन्द्र से जाकर कहा, और इन्द्र की आज्ञा से देवों ने द्वारका नगरी बसाई। जिसमें समस्त प्रकार की सुख सुविधाए प्राप्त थीं। कुबेर ने श्री कृष्ण को पीताम्बर, नक्षत्र माला, रत्न, मुकुट, दिव्य शारङ्ग धनुष, गदा कौमुदी. गरुड़ ध्वज रथ आदि प्रदान किए और बलराम को बनमाला आभरण, हल मूसल अस्त्र, भूषण वस्त्र, एक भारी धनुष, और ताल ध्वज रथ दिया। इस प्रकार सारी द्वारिका पुरी का निर्माण जिसके पूर्व में गिरनार (पूर्वोत्तर में रैवतक) दक्षिण में माल्यवान, पश्चिम में सौमनस और उत्तर में गन्धमादन पर्वत अवस्थित हैं स्वय देवताओ ने किया था जिसमे समुद्रविजय और वासुदेव आदि के लिए अलग अलग प्रासाद (महल) बनाए गए,
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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