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द्वारिकापुरी की स्थापना
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उनके सहयोगियो तथा अन्य सम्बन्धियों की हैं। मैं उन के शोक में रुदन कर रहीं हूं ।" इतना कहकर वह स्त्री पुनः रुदन करने लगी ।
स्त्री की बात सुन कर काली कुंवर को बहुत हर्ष हुआ । उसने सोचा-“चलो अच्छी बला टली । अब मैं उनके जल मरने की कोई निशानी लेकर पिता जी को दिखा दूंगा ।" यह सोचकर वह उस चिता की ओर बढा जिसे राम कृष्ण की बताया गया था, जब वह चिता के निकट गया, उसी समय देव उठा और उसने काली कुवर को चिता में धक्का दे दिया, जिससे गिरकर वह वहीं भस्म हो गया। जीवित चिता में जलते काली कु वर के चीत्कारों को सुन कर उसके सहयोगी दौडे, देव वहां से अतर्ध्यान हो गया । उन्होंने आकर कुवर को जलते देखा, पर तब तक उसके प्राण पखेरू उड़ चुके थे । वे शोक करते हुए वापिस जरासा के पास पहुँचे और उसे जाकर बताया कि काली कु वर को किसी ने चिता में रख दिया और वह जीवित ही जल कर मर गया । जरासघ को यह समाचार सुनकर बहुत ही दुख हुआ । उसके हृदय पर भयकर आघात पहुंचा ।
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द्वारिका पुरी की स्थापना
जब काली कुवर की मृत्यु का समाचार यादवों को मिला तो उन्हें अपार हर्ष हुआ। वे सोचने लगे कि पापियों को स्वय ही अपने कर्मों का फल मिल रहा है । लक्षण बता रहे हैं कि विजय हमारी ही होगी ।
एक बार मार्ग में उनकी प्रतिमुक्त कुमार मुनि से भट हुई । समुविजय ने उनके चरणों में शीश रख दिया और अपनी सारी स्थिति को कह सुनाया। अन्त मे पूछा कि - "हे मुनिवर । कस तो मारा गया अव जरासघ ने हमें परेशान कर रक्खा है, वास्तव में उस की शक्ति हमारी शक्ति के सामने अधिक है, इसी लिए हम शौरीपुर त्याग कर जा रहे हैं । प्राप कृपया बताइये तो सही कि इस युद्ध का क्या परिणाम होगा ? "
मुनिवर वाले - "तुम्हारे कुल में बलराम और श्री कृष्ण सी पुण्यात्मा हैं ओर इससे भी महान बात यह है कि अरिष्टनेमि बाईसवें तीर्थकर भी आप ही के घर जन्म ले चुके है । अतएव आप