________________
•
जैन महाभारत
४४२
खाकर कहता हूँ कि आप को मुख तब दिखाऊंगा जब अपने साथ यादवां को बांधकर ले आऊंगा । यहाँ तक कि वे समुद्र व अग्नि मे छुपे होंगे तब भी खींचकर बाहर निकाल लाऊंगा" अपने इस निश्चय को पूर्ण किए बिना वापिस नहीं आऊगा ।"
जरासघ की बांछे खिल गई । वह गदगद होकर बोला - "शाबाश, कु'वर | वास्तव मे तुम वीर हो रणधीर हो। तुम में मेरा अजेय रक्त विद्यमान है । मुझे तुम पर गर्व है । तुम्हारी सहायता के लिए योद्धा तुम्हे दिए जायेगे और साथ ही कुमार यवन सहदेव भी तुम्हारे साथ होगा ।"
उत्साह पूर्वक काली कुंवर ने महान योद्धा साथ लेकर यादवो का पीछा किया। जब यादव के साथ ( काफले) ने अपने पीछे धूल उड़ती देखी, जो भूरे बादलों की नाई उठ रही थी, तो सन्झ लिया कि शत्रु, ने धावा बोल दिया है। उन्होंने बहुमूल्य सम्पत्ति से भरी गाड़ियां आगे बढ़ा दी और योद्धा उनके मुकाबले के लिए पीछे हो गए ।
कहते है कि उस समय राम और कृष्ण के रक्षक कुल देव ने उनकी सहायता की। उसने रास्ते के निकट ही कुछ छोटी और कुछ बड़ी चिताए जला ढर्टी उनसे धू धू करके धधकती ज्वाला की लपटें निकल रही थीं । और धुए के बादल उठ रहे थे । यह सभी उस देव की माया थी । उन चिताओं के बीच एक स्थान पर एक स्त्री रो रही थी ।
जब काली कुंवर अपने दल बल सहित चिताओं के निकट आया, उसे इतनी सारी चिताए एक साथ जलते देखकर आश्चर्य हुआ । और नारी चीत्कारों ने उसे अपनी ओर आकर्षित कर लिया । उसके मन प्रश्न उठा कि यह सब क्या है और क्यों है । वह घोड़े से उतर गया और रुदन करती स्त्री के पास जाकर पूछा - " भद्रे । तुम क्यों रोती हो ? तुम्हे क्या दुख है ?"
स्त्री ने हिचकियों और सिस्कियो के बीच कहा - "हे कुमार मैं वसुदेव की बहिन हूँ, जरासंघ के भय से यादवी ने जलकर अपने प्राण गवा दिए है इसलिये मै रोती है । बड़ी चिताओ में बलराम और कृष्ण तथा अन्य यादव कुल के रत्न हैं और छोटी विताए