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जैन महाभारत अन्त मे इन्होंने परम आनन्द देने वाले उत्तमोत्तम वनो से रमणीयसम्मेदशिखर पर आरोहण किया । योग निरोधकर अघातिया कर्मक्षय किये एवं हजारो मुनियो के साथ मोक्ष शिला पर जा विराजे। __इस प्रकार मुनि सुव्रतनाथ के दीक्षा ग्रहण कर लेने पर उनके पुत्र दक्ष ने राज्य भार संभाला। राजा दक्ष के रानी इला से उत्पन्न एक पुत्र और पुत्री दो सन्ताने थीं। पुत्र का नाम ऐल और पुत्री का नाम मनोहरी था। राजा ऐल ने अंग देश में ताम्रलिप्ति नामक नगर बसाया
और उसके पुत्र ऐलेय ने नर्मदा के तट पर माहिष्मति नामक नगर बसाया । ऐलेय के कुणिम नामक पुत्र हुआ । कुणिम के पुलोम पुलोम के पौलम और चरम नामक दो पुत्र हुए। चरम का सेजय और पौलोम का महिदत्त हुआ। महिदत्त के अरिष्ट और मत्स्य नामक पुत्र हुए। मत्स्य के आयोधन से पुत्र थे । आयोवन का मूल और उसका पुत्र शाल तथा शाल का सूर्य हुआ। इसी वशं मे आगे चलकर वसु नामक लड़का हुआ। जिस समय महाराज वसु चेदी राष्ट्र की राजधानी शुक्तिपुरी मे राज्य कर रहे थे, उस समय देवयोग से एक बड़ी ही अद्भुत घटना घटी।
नारद व पर्वत का शास्त्रार्थ राजा वसु के समय मे क्षीरकदम्बक नामक एक बड़े भारी वेदो के विद्वान् ब्राह्मण रहते थे। उनके पास अनेक शिष्य वेदाध्ययन करते थे। उनमें से उनका अपना पुत्र पर्वत भी एक था। पर्वत के अतिरिक्त महाराजा वसु स्वय वेदाध्ययन करते थे। इन दोनों के साथ तीसरे साथी थे नारद । एक बार तीनों को एक साथ पढ़ते देख किसी अवधिज्ञानी मुनि ने कहा कि इन तीनों साथियों मे से एक तो मोक्षं को जायगा और बाकी दोनों संसार के आवागमन चक्र मे भ्रमण करते रहेगे । मुनि की यह बात सुनकर गुरु ने उनकी परीक्षा लेने के विचार से कि इनमें से कौन मोक्ष का अधिकारी है, गुरु ने इन्हें एक-एक नकली कबूतर देकर कहा कि इसे वहाँ जाकर मार डालो जहाँ कोई न देखे।
इस पर वसु ने तत्काल एक कपड़े में लपेटकर कबूतर की गर्दन । मरोड़ दी और पर्वत भी बहुत से स्थानों पर इधर-उधर भटकने के पश्चात् एक एकान्त गुफा मे जा कबूतर को मार लाया। किन्तु नारद को ऐसा कोई स्थान नहीं मिला, जहाँ वह कबूतर को मार सके । क्योंकि उन्होंने देखा कि ऐसा तो कोई स्थान ही नहीं जहाँ कोई भी न देखता