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जैन महाभारत तुम्हारी पुनीत गाथा चलती दुनियां तक दोहरायी जायगी।"
इस प्रकार देवकी और वसुदेव कस के बन्दी गृह से मुक्त हो गए। उस बन्दी गृह से जो उन्हीं के वचन से निर्मित हुआ था। उग्रसेन को तुरन्त मुस्त कर दिया गया । कसकी यमुना तट पर उत्तर क्रिया की गई और उसके उपरान्त यादवों की एक विराट सभा आयोजित करके अतिमुक्त मुनि काण्डसे लेकर कंस वध तक की सारी कथा कह सुनाई। __सभा हो रही थी कि एक नारी कराठ से निकला चीत्कार सुनाई दिया। सभी के कान उस ओर लग गए । सभी को कारवाई रुक गई। सभी विस्मित हो यह जानने की चेष्टा करने लगे कि यह करुण क्रन्दन किस का है। चीत्कार करने वाली सभा को आर आ रही थी, चीत्कार निकट से निकट होते गए। ओर अब यह स्पष्टतया सुनाई देने लगा कि वह रुदन करने वाली शोकृष्ण को कोस रही है। सभी को यह समझते देर न लगी कि चीत्कार करने वाली कौन हो सकती है। ____ जीवयशा ने कुछ ही देरी में सभा में प्रवेश किया। उसने आते ही शोर मचाया-"पति के हत्यारे को आप लोग इस प्रकार अपनी सभा बीच बेठाए हुए है । आप लोगों का लज्जा नहीं आती कि जिसने मथुरा नरेश का वध किया वह शाति पूर्वक यहां बैठा है। मेरे सुहाग में आग लगाने वाले इस अन्यायी का आपने कुछ भी नहीं किया ? मेरे माथे से सुहाग बिन्दी पोंछ डालने वाले को क्या आपसे दण्ड नहीं दिया जाता? क्या ससार मे ऐसा कोई भी नहीं है जो मेरे पति को हत्या का बदला ले सके ?"
सभा में उपस्थित सभी लोग मौन बैठे रहे। कुछ यादवों ने चाहा कि वे उसे ललकार दें पर नारी के साथ किसी भी प्रकार की वार्ता करना उन्हें अच्छा नहीं लगा। वे चाहते थे कि जीवयशा वहा से चली जाय।
जीवयशा ने सभी को मौन देखकर फिर कहा-आप लोग चुप है जैसे सभो मृतप्राय हों। आप लोग कायर है। आप लोग निष्प्राण है । पर आपका भला क्या बिगड़ा आप क्यो बोलने लगे । इस अन्यायी कृष्ण से प्रतिशोध लेने का साहस तो वह करेगा जिसके हृदय पर चोट लगी हो। आपको क्या पड़ी है ?" फिर श्री कृष्ण को सम्बोधित करते हुए वह बोली-ओ हत्यारे अहीर ! तु यह मत