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जैन महाभारत
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कंस की यह दुर्दशा देख कर दर्शक मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे । राजाओ के मन हर्ष से भरे थे, वे उस अहकारी की दुर्दशा को लख कर अनुभव कर रहे थे कि उस की यही दशा होनी चाहिए थीं। कस के सैनिक उसे बचाने के लिए अस्त्र शस्त्र ले कर दौड़ पड़े । बलराम से न रहा गया। वे मोर्चे पर आ गए और मच के खम्भ (स्तम्भ) उखाड़ उखाड़ कर सैनिकों के सिर तोड़ने आरम्भ कर दिए। इस अभूतपूर्वं अस्त्र की मार से भयभीत होकर सैनिकों के पाँव उखड़ गए, और अपने प्राण लेकर भाग खड़े हुए ।
कस पड़ा पड़ा ही चिल्लाया- "मूखौं भागते क्यों हो, सिर हथेली पर रख कर आगे बढ़ो, कृष्ण को मारो, मेरे प्राण बचाओ ।"
कस "मुझे बचाओ, मुझे बचाओ" की पुकार करता रहा, पर कोई भी उसे बचाने के लिए पास नहीं आया । बलराम जी के बल के सामने वे सिर पर पांव रख कर भाग रहे थे। उन्हें अपने बचने की चिन्ता थी, वे दूसरे को क्या बचाते ।
कंस ने एक बार फिर शोर मचाया - " दौड़ो दौड़ो मुझे बचाओ । मुझे बचाओ ।" श्रीकृष्ण ने कहा- "दुष्ट अब किसे सहयोग के लिए पुकारता है, किसी के साथ तू ने कभी कोई सहानुभूति दिखाई है, कभी तेरे हृदय में करुणा जागी है, तूने जब कभी किसी के प्राणों की रक्षा नहीं की तो फिर तुझे आज कौन बचाने आयेगा ।
"मूर्ख मैं तेरा सिर तोड़ दूंगा, खून पी जाऊंगा । तनिक मुझे उठने दे ।" भूमि पर लेटे हुए, कंस ने उठने का प्रयत्न करते हुए
कहा ।
श्रीकृष्ण ने एक अट्टहास किया" दिखा कहां है वह तेरा असीम बल, जिस पर तुझे अहकार था, खून तो तब पियेगा जब तू उठ सकेगा ? कस ! भूल जा उठने की बातें, अकारी का पतन जब होता है तो फिर वह उठा नहीं करता ।"
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अरे कोई मुझे बचाओ" कंस फिर चीखा ।
उधर कस के कुछ सैनिक इकट्ठे होकर आगे बढ़े। उन्हें भय था कि कहीं कस श्री कृष्ण के हाथों से बच निकला तो उन्हें मार डालेगा, एक बार इसी भय से उन्होंने एक साथ मिल कर हल्ला बोल दिया । बलराम ने फिर मघ के स्तम्भ उखाड़कर उन पर प्रहार किया। कुछ