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कर्ण की चुनौती
३६७ घर में जन्म लेने का इतना बड़ा दण्ड ?” दुर्योधन तिलमिला उठा। उसे दुख भी हुआ ओर क्राव भो आया वह साचने लगा- क्या इतनी सी बात पर मेरो आशाआ पर पाना फेर दिया जायेगा ?" कुन्ती को वडा हर्ष हुआ, वह कृपाचार्य का मन ही मन बार बार धन्यवाद करने लगी, उसे बहुत सन्तोष हुआ यह सोचकर कि इसी बहाने से सही, उसकी सन्तान का परस्पर युद्ध तो टल जायेगा, क्यों कि वह सहन नहीं कर सकती कि उसकी कोख के जन्मे को कुमार आपस में ही युद्ध करें । उसका हृदय कह रहा था कि कर्ण उसी का पुत्र है । ओह | ममता कैसी होती है । कुन्ती बेचारी तो बुरी तरह व्याकुल हो गई थी।
किन्तु दुर्योधन अपनी आशाओं को इस प्रकार धूलि धूसरित होते न देख सका। जिस समय कर्ण ने हीनता पूर्ण, विवशता प्रदर्शित करती आखों से दुर्योधन की ओर देखा, वह तुरन्त खडा होगया और कहने लगा-"आप लोग पक्षपात कर रहे हैं ।
"दुर्योधन ! इसमें पक्षपात की तो कोई भी बात नहीं है | कृपाचाय ने दुर्योधन के आरोप का उत्तर देते हुए शान्त एव गम्भीरता पूर्ण मुद्रा में कहा, बात यह है कि नीति के विरुद्ध हम कैसे युद्ध होने दे सकते हैं। हमारी अनुपस्थिति में चाहे आप लोग कुछ की करे पर हमें तो नीति का ज्ञान है ।" __ "नीति में तीन को राजा होने योग्य बताया है, राज-कुल में उत्पन्न होने वाले को, बलवान को और सेनापति को, दुर्योधन ने कर्ण का पक्ष लेते हुए कहा, आप कर्ण को अर्जुन से लड़ाईए तो सही, यदि कणे अर्जुन को परास्त करदे तो बलवान समझना अन्यथा नहीं, यहां कुल का नहीं, बल का विचार होना चाहिए।" ___ "नहीं। हम नीति विरुद्ध कोई परीक्षा न होने देगे। यह परीक्षा है, विद्यावानों की परीक्षा, अँगलियों व अज्ञानियों की नहीं। और न यह कोई तमाशा ही है।" इतना कह कर कृपाचार्य ने दुर्योधन को झिड़क दिया। ___कुन्ती प्रसन्न हो रही थी, कौरव दांत पीस रहे थे और कृपाचार्य की दुत्कार से दुर्योधन खीझ उठा। उस ने आवेश में आकर कहा कि यदि राजकुल में उत्पन्न होने वाले से ही आप अर्जुन को लड़ा सकते हैं तो मैं कर्ण को अपना भ्राता स्वीकार करता हूँ।