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जैन महाभारत
लिखा नाम ही रख लिया होगा। हाँ देखो उसके लक्षण भी साफ बता रहे हैं कि वह महाराज पाण्डु की ही प्रथम सन्तान है, यह अर्जुन का सगा भाई है, पर अज्ञान के कारण दोनों ही आपस मे लड़ रहे हैं। अब क्या किया जाय, इस अनर्थ को कैसे रोका जाय ' हा! मेरी सन्तान आपस मे ही एक दूसरे की विरोधी होकर लड़ रही हैउफ इनके अंधकार को कैसे दूर करू । मैं क्या यत्न करू ?"
दोनों को युद्ध के लिये तैयार देखकर वह व्याकुल हो गई। उसका हृदय दोनों के लिए तड़प रहा था, वह नहीं चाहती थी कि उसके पुत्र
आपस में लड़े और किसी एक की भी जग हसाई हो । यदि उनमें से एक का भी बाल बांका हो गया तो इसका कलेजा फट जायेगा । वह बुरी तरह परेशान हो गई। पर कोई उपाय नहीं समझ में आया कि वह कैसे इस अनर्थ को रोके । फिर निराश होकर अपने को और पाण्डु को दोष देने लगी। यह सब कुछ लौकिक व्यवहार के प्रतिकूल कार्य करने के कारण ही तो हो रहा है।
कृपाचार्य वहां थे, वे यह देखकर सिहर उठे कि परीक्षा भूमि रणभूमि में परिशान्त हो रही है। यहां कोई अनर्थ हो गया तो क्या होगा। यह सोचकर वे तुरन्त इसे रोकने का उपाय सोचने लगे और कुछ देर बाद वे शीघ्रता से उठे और जाकर कर्ण तथा अर्जुन के बीच में खड़े हो गए जैसे दो मदोन्मत्त हाथियों के बीच में तीसरा हाथी खड़ा हो गया हो । वे बोले- "अर्जुन पाण्डु पुत्र और कुन्ती का आत्मज है, यह बात सर्वविदित है । इसी प्रकार हे वीर ! तुम भी अपनी जाति
और कुल सिद्ध करो। क्योंकि राजकुमार के साथ राजकुमार का ही युद्ध हो सकता है, अन्य के साथ नहीं । यदि तुम भी राजकुल मे उत्पन्न ठहरे तो अजुन तुम से अवश्य ही मल्लयुद्ध करेगा। नहीं तो तुम्हें
उस से लड़ने का अधिकार नहीं, तुम किसी अपनी जाति वाले से ही है लड़ सकोगे।" __कृपाचार्य की बात पर दर्शकों की ओर से आवाज आई-ठीक है। हमे बताया जाया कि कर्ण किस राजा का बेटा है ।' पर कर्ण के उत्साह पर पाला पड़ गया, वह सन्न रह गया उसकी रगो में उमड़ता लोहू शांत हो गया, उसके अग शिथिल पड़ गए, वह सोचने लगा 'मै तो रथवान का पुत्र हूँ। फिर मैं क्या कहूँ ?" क्या रथवान के