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अर्जुन के प्रति ईया मगध नगर में भी घायल हो जाता। पर तूने ऐसे हल्के हाथ से तीर SET किनिस से मेरा पैर तो बच जाए और ग्राह होद करका आया यह है तरी चतुराई और बुद्धिमत्ता । विद्या तो मैने समो कोनी
पर यह सब इत्प्रभ हो खडे रहे । इसी से मैं कहता हूं कि इस समय नने हा मर प्राणों की रक्षा की।"
फिर मभी शिष्या को मन्यावित करते हुए कहा, मेरे साथ उन्हें भी अर्जन का उपकार मानना चाहिए। यदि अनि मुले आज न पचाता ता मैं तुम्हारा गुन जैसे रह ऋता या दुर्गवन ने धीरे में
| "अपघामा और कणे तो वही समय तीर चलाने की सोच रहे ५ पर जय लाडले अर्जन ने वनुम का लिया तो वे रह गए। अन यदि दोच म न पाता तो अश्वत्थामा या कर्ण प्राण वचा ही दिने।' दुर्योधन की बात सुन कर । पास ही में खड़े कर्ण और प्रदायामा जबडा सन्तोष हुआ, पर भीम सुनते ही मुस्करा पड़ा। गुगंव बात न सुन पाये।