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आना किसी विशयहां आना इस बा अपने आने क
अठाहरवां परिच्छेद
शिष्य परीक्षा-कर्ण की चुनौती क दिन द्रोणाचार्य भीष्म पितामह के पास पहुंचे । अनायास ही - उन्हें आया देखकर भीष्म जी सोचने लगे कि आचार्यजी यहाँ आना किसी विशेष कारण से ही हुआ है अतएव वे कह बैठे-"आज आपका अकस्मात यहाँ आना इस बात का परिचायक है कि किसी विशेष उद्देश्य से आपने कष्ट किया है । अपने आने का प्रयोजन बताने की कृपा करें।" ___ "हां, मैं निष्कारण यहाँ नहीं आया, द्रोणाचार्य बोले, राज-काज करने वालों के पास निष्प्रयोजन जाना अच्छा नहीं होता।" ____ भीष्म-"तो फिर कहिए, क्या आज्ञा है ?"
द्रोण-आपने मुझे राजकुमारों को विद्याभ्यास के लिए सौंपा था । मुझे प्रसन्नता है कि मैंने अपने उत्तरदायित्व को पूर्ण कर दिया है। राजकुमारों ने शिक्षा प्राप्त कर ली है और यू तो सभी राजकुमारों को लगभग सभी विद्याए दी गई हैं। परन्तु प्रत्येक कुमार समस्त विद्याओं का पात्र नहीं हो सकता । जो जिस योग्य था, वह उसी में निपुण हो गया है।"
भीष्म--"अहो भाग्य है आप ने राजकुमारों को इतनी शीध्र विद्वान् बना दिया । वास्तव में इस बात को सुन कर मुझे अपार हर्ष हुआ है। क्योंकि विद्याध्ययन का कार्य राजकुमारों के जीवन का एक मुख्य कार्य होता है और होता है संरक्षकों का विशेष उत्तरदायित्व
आपने हमारे कंधों को इस उत्तरदायित्व से भार मुक्त कर दिया। यह बड़े सन्तोष की बात है। आप का यह कथन अक्षरशः सत्य है कि
प्रत्येक राजकुमार प्रत्येक विद्या में निपुण नहीं हो सकता और न प्रत्येक । समस्त विद्याओं का पात्र ही होता है। इस सम्बन्ध में आपने जो भी