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द्रोणाचार्य
अपने को धैर्य बंधाने के लिये सोच लिया था कि द पद गमा है। उनकी यह हैसियत नहीं कि वह किसी के लिये द्वार पर भागा जाय। पर ज्यों ही उन्होंने दरबार खास में प्रवेग किया और सामने द पद का सिंहासन पर विराजमान पाय और उन पहूँचने पर मी वष्ट निश्चत सिंहासन पर ही बैग रहा उन्हें नीम प्रारत्र दृथा। मागे
द और सिंहासन निर हूँ पर उन्हें नयेई . लिया, भित्र जानकर पर बनने की सोच नही बन्द अविचल्विस ने हिमर रहा: लाल भी नहीं निकला