________________
कुन्ती भोर महाराज पाह
.
गुन
३१३ ने यह सारी बातें भीष्म जी से बता दी थी उन्होंने स्वीकार कर लिया । पर ऐसी स्थिति में विवाह होना अच्छी बात नहीं समझी गई। तथारिया होने लग६ मास पूर्ण होने पर हन्ती ने एक अत्यन्त रानि पान्न सूर्य की भाँति पुत्र रत्न को जन्म दिया। गुप्त रूप से सभी कार्य किये गए | पर कानों कान सभी को ज्ञात हो गया। उस शिशु पा नाम 'कर्ण' + रख दिया गया । क क कानों में कुण्डल और भिन्न भिन्न प्राभूषण, रत्न कवच आदि पहन कर तथा स्वर्ण मुद्राओं क साथ उसे एक सन्दूक में रख दिया। उनमें एक पर्चे पर उसका नाम लिस कर सूरा र दिये गये और उसे चमुना जी में बहा दिया गया। जिन प्रागे एक रथनान ने निकाल लिया और उसका पालन पोषण किया |
अधक वृष्णि के घर एक सन्यासी आये, कुन्ती ने उन मान सेवा की । जिसमे सन्यासी बहुत प्रसन्न हुये और कुन्ती को उन्होंने पर दिया कि वह जिस देवता का भी स्मरण करेगी वही उन पान या जायेगा । सन्यासी जी के चले जाने के उपरान्त कुन्ती के वन म यह शंका उत्पन्न हुई कि सन्यासी जी ने जो वरदान दिया है क्या न मय है ? क्या उस द्वारा किसी भी देवता को स्मरण रन पर देवना उसके सामने था उपचित होगा ? काठी तो वह भोचन लगी कि सन्यासी जी के वरदान में कितना सत्य है इसका परीक्षा लेकर देखा जाय । 'अन' आपाश में दीप्तिमान, वातिवान सूर्य पर उसकी दृष्टि गई और सूर्य देवता को ही उसने स्मरण दिया। जी का वरदान मफल हुआ। सूर्य देवता तुरन्त आकाश में पातिवान पुरुष रूप में चुन्ती के सामने था गये। उन्होंने तुम्हारे स्मरण पर पाया है और जब मैं श्राता शांति किये बिना नहीं लौटता। अत मेरी
शमी
the banda que
पा पूनि दरी। उन्
ली किसी अभी कुमारी हू । अनिवादिय कि नाथ नग नहीं पर सक्ती | अन आप मुझे एमा परेजी
काही
दिव
2