________________
___३१४
जैन महाभारत
आप पा कर लौट जायें। परन्तु सूर्य देवता यू मानने वाले न थे। उन्होंने कहा कि अब तो बिना इच्छा पूर्ति के मैं लौट नहीं सकता, हॉ, ऐसा कर सकता हूँ कि तुम्हारे कौमार्य की भी रक्षा हो जाय और मेरी इच्छापूर्ति भी हो जाय । मैं तुम्हे विश्वास दिलाता हूँ कि तुम्हारा कौमार्य भंग नहीं होगा। मेरे वीर्य से जो पुत्र जन्म लेगा वह तुम्हारे कान से होगा। इस प्रकार कर्ण कान से उत्पन्न हुआ और कुन्ती कुमारी की कुमारी ही रही।
यह बात स्वयं कितनी हास्यास्पद है कि एक शिशु कन्या के कान से उत्पन्न हुआ बताया गया । आज भी तो स्त्रियों के नाक कान आदि होते ही हैं पर किसी ने नहीं सुना कि आज तक किसी के भी कान से कोई शिशु उत्पन्न हुआ। जिस प्रकार गाय के सींग से कभी दुग्ध नहीं निकलता, जिस प्रकार आकाश में कभी फूल नहीं खिलते, गधे के सींग नहीं होते, पत्थर पर अन्न उत्पन्न नहीं होता, सर्प के मुख मे अमृत उत्पन्न नहीं होता, जिस प्रकार यह सब बाते असम्भव हैं इसी प्रकार यह भी सम्भव नहीं है कि स्त्री के कान, या आंख नाक से शिशु उत्पन्न हो । बल्कि बात यह है कि कारण भानु सुत कहलाता है, क्योकि भानु नामक रथवान ने उसका पालन पोषण किया । भानु सूर्य को भी कहते हैं अतएव अज्ञानियों ने उसे सूर्य देवता का पुत्र बता दिया। और कर्ण चूकि कान को भी कहते हैं अतः कान से उसकी उत्पत्ति बता दी गई। बात जो है वह ऊपर बताई जा चुकी है।
एक बात यह भी है कि देवताओं के वीर्य में सन्तानोत्पत्ति के कीटाणु ही नहीं होते। न देवांगनाओं के साथ उनके सम्भोग से ही सन्तान होती है और न किसी स्त्री के साथ संभोग होने पर ही सन्तान हो सकती है।