________________
महाराणी गगा
२८१
हो जाती, निपूती बन जाती । मेरा सुहाग जाता या गोद खाली हो जाती।"
"हां देवी । तुमने आज एक भयानक काण्ड को होने से बचा लिया।" शान्तनु ने कृतज्ञता प्रगट की । गागेय अपनी माता के साथ चला गया और हृदय में एक पीडा लिए शान्तनु अपने महल को लौट आये।
कहते है कुछ दिनो पश्चात् शान्तनु ने अपने शूरवीर महान बलवान शुद्ध विचार और पवित्र चरित्र गागेय को अपने पास बुला लिया।
x + +
गांगेय की भीष्म प्रतिज्ञा नृप शान्तनु एक दिन यमुना की ओर जा निकले । तट पर खडी एक परम सुन्दरी कन्या पर उनकी दृष्टि गई । साक्षात देव लोक की अप्सरा समान वह कन्या सौंदर्य मे अद्वितीय थी। महाराज शान्तनु नं उस देखा तो उस के प्रति अनुराग ने उनके हृदय में जन्म लिया और वे चित्र लिखित से उसकी ओर टकटकी लगाए देखते रहे । न जाने कितनी देरी तक वे उसी के अगों पर दृष्टि जमाए रहे। मद भरे नयन, गुलाबी कपोल, पुष्प पखुड़ियों से प्रारक्त अधर, गोल चेहरा, नितम्बो से नीचे तक लटके गहरे काले केश, गर्वित कुच, जिनकी नोक वाण की भांति उभरी, पतली सी मुट्ठी भर कर, सभी कुछ शान्तनु के विपयोन्माद को उत्तेजित करने के लिए पर्याप्त था। वह एक परम सुन्दरी थी, ऐसी सुन्दरी का रूप कितने ही लोगों के चित्त को चचल करने में सफल हो सकता था। सुन्दरी ने तो इन्द्र तक को अपने वश में किया, फिर मनुष्य की तो बात ही क्या। शान्तनु उसके मदवाले यौवन का तीर खाकर घायल हो गए। एक नाविक से पूछा “यह सुन्दरी कौन है ?" "राजन् । यह कन्या मेरी है, इसका नाम सत्यवती है।' ____ "नाविक की कन्या और इतनी रूपवती । आश्चर्य की बात है" शान्तनु सोचने लगे । उन्होंने अपने मत्री को एकान्त में कुछ समझाया
ओर मत्री से नाविक को कहलाया कि वह सत्यवती का विवाह महाराज शान्तनु के साथ कर दे।