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महाभारत नायक बलभद्र आर श्रीकृष्ण रूप सारे ससार को अपने ही समान सदाशय समझता है इसी लिये वसुदेव ने उसमें कुछ बुराई न समझी और देवकी के साथ परामर्श करने के पश्चात् उन्हों ने कस की प्रार्थना को स्वीकार करते हुए कहा कि हे भाई । तुमने यह कौन सी बड़ी चीज चाही है? जैसे मेरे बच्चे वैसे तुम्हारे, मैं तो अपने में और तुम मे कोई भेदभाव नहीं देखता फिर तुम्हें इस छोटी सी बात में इतना संकोच क्यों हुआ ? तुमने ही हस्गरा विवाह करवाया है इस लिए हम पर और हमारी सत्तान पर तुम्हारा पूरा अधिकार है, तुम हमारे बच्चों को अपना ही समझो। तुमने हमें आपस में मिलाकर हम पर जो उपकार किया है उसके प्रत्युपकार में हम जो कुछ भी कर सकें सो थोडा है।'
वसुदेव और देवकी के ऐसे वचन सुन कर कपटी कस मन ही मन बहुत प्रसन्न हुआ उसने कहा मेरा तो जीवन आप लोगों पर ही निर्भर है आपकी बडी दया है। इस पर वसुदेव ने देवकी से कहा अब अधिक सोचने और कहने की आवश्यकता नहीं तुम प्रत्येक सन्तान को उत्पन्न होते हो कस के हाथों सौंप दिया करो, फिर इनकी जैसी इच्छा हो वैसा करे। उनके लालन-पालन मरण-पोषण या जीवन-मरन से हमें कोई प्रयोजन नहीं है।
इस प्रकार वसुदेव और देवकी के वचनों से आश्वस्त हो कस अपने स्थान को विदा हो गया, आज मारे खुशी के उसके पाँव धरती पर नहीं पड़ रहे थे वह मदोन्मत्त की भांति यह सोचता चला जा रहा था कि अब तो ससार में कोई मार ही नहीं सकता, मैं अपने विघातक का जन्मते ही वध कर डालू गा, फिर भला ससार में मैं किसी के हाथों कैसे मारा जा सकता हूँ। ___ उधर कस के चले जाने के पश्चात् जब वसुदेव को अतिमुक्त मुनि के वृतान्त का पता लगा और यह ज्ञात हुआ कि उन्हों ने जीवयशा को बताया है कि देवकी का पुत्र ही कस और जरासंघ का वध करेगा' तो वे बहुत चिन्तित और दुखी हुए। अब तो कस की कपट योजनाओं का सार। चित्र उनकी आखों के सामने घूम गया किन्तु अब पछताने से क्या हो सकता था क्योंकि महापुरुष अपने दिये हुए वचन से कभी पीछे नहीं हटते चाहे उनके प्राण ही क्यों न चले जायें वसुदेव भी ऐसे ही सत्यभक्त, दृढ़ प्रतिज्ञ मानव थे उन्होंने भाग्य पर भरोसा रखते हुए यह सोच कर कि यदि मेरी सन्तान के हाथों ही कस की मृत्यु लिखी