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जैन महाभारत उसने सीखा ही नहीं था । उसका जीवन ही विषम परिस्थितियों मे बीता था वह भला इस छोटी मोटी सम्भावित आपत्ति की क्या परवाह करता उसने अपने बाहुबल ओर बुद्धि बल से तत्काल इस विपत्ति से छुटकारा पाने का उपाय ढूढ़ निकाला । उसने मन ही मन सोचा कि यदि मैं किसी प्रकार सातों गर्भो को अपने वश में कर लू तो उन सब का किसी प्रकार से काम तमाम कर डालूगा 'न रहेगा बॉस न बजेगी बांसुरी' के अनुसार यदि देवकी के गर्भ से उत्पन्न बालको को मैं जीते ही न रहने दूंगा तो वह भला मुझे मारेगा ही कैसे ? इस प्रकार सोचते सोचते वह वसुदेव के पास जा पहुंचा। उसे इस प्रकार अनायास, असमय में आया देख वसुदेव बड़े चकित हुए कि आज यह पूर्व सूचना दिये बिना ही न जाने क्यों यहां आया है। फिर भी उन्होंने उसका यथोचित स्वागत सत्कार कर बड़े प्रेम से अपने पास बिठाया और पूछने लगे किः--
मित्रवर ! क्या बात है आज तुम्हारी मुखाकृति पर चिन्ता की रेखाये झलक रही हैं, ऐसे प्रतीत होता है कि अवश्य तुम किसी भारी चिन्ता में पड़े हुए हो । मुझे तो ऐसी किसी चिन्ता का कोई कारण दिखाई नहीं देता। पर फिर भी यदि कोई चिन्ता की बात हो और उसका निदान कारण मैं कर सकता हूँ तो अवश्य बताओ मुझ से जो' कुछ भी हो सकेगा तुम्हारे लिए अवश्य करूंगा।
वसुदेव के ऐसे प्रेम भरे वचन सुन कर कस बहुत प्रसन्न हुआ। और बड़े विनय के साथ निवेदन करने लगा कि बचपन से लेकर आज तक मुझ पर तुमने बहुत अधिक उपकार किये हैं, मैं पहिले ही उन उपकारों के भार से दबा हुआ हूं किन्तु अब एक और प्रार्थना करना चाहता हूँ आशा है तुम मेरी प्रार्थना को भी अवश्य स्वीकार करोगे
और मेरा मनोरथ पूर्ण कर मुझे जन्मजन्मान्तरों तक के लिए कृतज्ञ बना लोगे । हे मित्र । मेरी इच्छा है कि देवकी के सातो गर्भ आप मुझे दे दे । क्या आप मेरी यह इच्छा पूर्ण न करेगे?
यह सुन वसुदेव पहले तो बड़े चकित हुए उनकी कुछ समझ मे न आया कि आखिर मामला क्या है ? इसकी इस अनोखी मॉग का क्या रहस्य है ? किन्तु थोड़ा विचार करने पर वसुदेव को कस की उस मॉग मे दुर्भिसधि दिखाई न दी, बात तो यह है कि यह सरल हृदय