________________
जैन महाभारत
कान्ति से जगमगाने लगा। इसी समय सामानिक जाति का देव महा-शुक्र स्वर्ग से च्यव कर आया, और वह पृथ्वी की मनोहर मणी के समान रोहिणी उदर मे अवस्थित हो गया। क्रमशः सवा नौ मास समाप्त हो जाने पर व समस्त दौहद (गर्भाभिलाषाए) पूर्ण हो जाने पर सुन्दरी रोहिणी ने एक अत्यन्त रूपवान् पुत्र को जन्म दिया । इस बालक के जात कर्म नाम करण आदि सभी सस्कार यथाविधि बड़ी धूम धाम से सम्पन्न हुए। इस जन्मोत्सव , के समारोह में जरासन्ध आदि अनेक राजा महाराजाओ ने सोत्साह भाग लिया। महाराज समुद्रविजय और वसुदेव ने भी इस शुभावसर पर उपस्थित अपने सम्मानित अतिथियों की आवभगत मे किसी प्रकार की कोई कसर उठा न रखी । यह बालक परम अभिराम-सुन्दर था इसी लिए इसका 'नाम राम रक्खा गया। आगे चलकर अत्यन्त बलवान और पराक्रमी सिद्ध होने पर राम के साथ "बल" विशेषण और लग गया और वह बलराम, बलदेव, ' बलभद्र, बल आदि अनेक नामों से प्रसिद्ध हुआ। अपने हल नामक एक विशेष शस्त्र के धारण करने से उसे लोग हली या हलधर भी कहने लगे। अब तो बलराम अपने माता पिता और अन्य बन्धुओं की गोद में लालित पालित हो कर नवोदित इन्दुकला की भॉति बढ़ने लगा।
जैसा कि प्रारम्भ मे बतलाया गया है कि कस का बचपन वसुदेव के साथ बीता था । वे उसके सखा होने के साथ साथ शस्त्रादि विद्याआ के शिक्षक और गुरु भी थे। उन्हीं के सहयोग से सिंहरथ जैसे महा पराक्रमी योद्धाओं को परास्त करने का यश और श्रेय उसे प्राप्त हुआ था। तब तक वह एक अनाथे की भांति वसुदेव औप समुद्रविजय के आश्रय मे रहता था; किन्तु अब वह जरासन्ध की कृपा से उसकी पुत्री जीवयशा का भर्ता बन कर मथुरा का अधिपति हो चुका था, और उसने अपने पिता उग्रसेन से बदला लेने के लिए उसे बन्दीगृह म डाल दिया था। जरासन्ध और कस ने मिलकर इस समय समस्त पृथ्वी पर अपना पूर्ण आतंक जमा रखा था। किन्तु वसुदेव के प्रति
१ वलदेव जैन शास्त्र की दृष्टि से एक पद विशेष भी है । अर्थात् वासुदेव का वटा भाई बलदेव कहलाता है। ये स्वर्ग या मोक्षगामी होते हैं । बलराम नोवे बलदेव थे । इन वलदेव एव वासुदेव का प्रेम ससार में अद्वितीय होता है।