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* पाठवां परिच्छेद *
महाभारत नायक बलभद्र और श्री कृष्ण
"श्री कृष्ण और बलराम का जन्म' इस प्रकार वसुदेव सौ से भी अधिक वर्प बाहर बिताकर अव वापिस अपने घर शौरीपुर मे आ पहुचे । वे अपने जीवन की देशदेशान्तरों में भ्रमण आदि की मनोरजन कथाये सुना सुना कर अपने भाई बन्धुओं का मनोरजन करने लगे।
--बलराम जन्मकुछ समय बीतने के पश्चात एक दिन रोहिणी अपनी हिम धवल शैय्या पर सानन्द शयन कर रही थी कि रात्री वीतते वीतते रजनी के अन्तिम पहर के प्रारम्भ की पवित्र वेला मे उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि कोई चन्द्रमा के समान शुभ्र गजराज, पर्वत के समान ऊची उठती हुई तरगो से सुशोभित गम्भीर गर्जन करता हुआ सागर, पूर्ण चन्द्र, और कुन्द के पुष्प के समान शुभ्र सिंह, उसके मुख में क्रम से प्रविष्ट हो रहे है। आंख खुलने पर प्रात काल होते ही अपने इन चारों स्वप्नों का वृत्त अपने प्राणनाथ वसुदेव से निवेदन कर पूछने लगी कि हे नाथ ! इन स्वप्नों का फल कृपा कर मुझे बतलाइये।
तब वसुदेव ने इन चारो स्वप्नों का फल बतलाते हुए कहा किप्रिये । तुम्हारे ये चारों स्वप्न अत्यन्त शुभ और हितप्रद हैं । शीघ्र ही तुम्हारे एक ऐसा पुत्र उत्पन्न होने वाला है जो जगराज के समान उन्नत, समुद्र के समान गम्भीर आर अलध्य, चन्द्रमा के समान निर्मल यश व अनेक कलाओ का धारक, तथा सिंह के समान अद्वितीय पलवान और समस्त प्रजा प्रिर होगा।
अपने प्राणनाथ के मुख मे इन स्वप्नों का ऐसा शुभ प्रोर सुन्दर फल सुन कर रोहिणी का अंग प्रत्यग अानन्दोल्लास से विकनित हो उठा । उसका मुख चन्द्र, माना सम्पूर्ण-कलाओं से सुशोभित दो दिव्य