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रोहिणी स्वयंवर सैनिकों के अग प्रत्यगों से प्रवाहित रक्त धारा में कहीं हाथ, कहीं पाव, कहीं धड, कहीं सिर, कच्छ मच्छ आदि जलचर जीवों के समान तैरते हुए दिखाई दे रहे थे।
कुमार वसुदेव को शस्त्र सचालन कुशलता को देखकर बडे बडे साहसियो के छक्के छूट गये। वे विद्युद् वेग से जिस बार भी निकल जाते उसी ओर के सब शत्रुओं का बात की बात में सफाया कर डालते। इधर तो वसुदेव इस प्रकार शत्रु सेना सहार करने पर तुले हुए थे। उधर हिरण्यनाम अपने शत्रु पौण्ड के दात खट्टे कर रहा था । उसने देखते ही देखते अपने तीक्ष्ण-बाणों से पौण्ड्र के ध्वजा-छत्र सारथी रथ के घोडों को नीचे गिरा दिया। यह देखते ही पौण्ड्र ने भी काध में भरकर हिरण्यनाम को रथहीन कर डाला । और ज्योही दुष्ट-पौण्ड्र हिरण्यनाम पर टूटना चाहता था कि सहसा वसुदेव वहाँ जा पहुँचे । उन्होंने उसे अपने रथ में बेठाकर पौण्ड्र की सब आशाओं पर पानी फेर दिया।
पौण्ड को वसुदेव के बाणों से घायल हो गिरते देख शत्रु सेना के सव महारथी एक साथ वसुदेव पर टूट पडे । इधर अकेले वसुदेव इधर चारों ओर से उमड घुमड कर आगे बढ़ते हुए महापराक्रमी वीरों का लोमहर्पण युद्ध होने लगा। वसुदेव को इस प्रकार चारों ओर से घिरे देख कुछ न्यायशील राजा कहने लगे कि अरे । यह घोर अन्याय है। इस अकेले को घेर कर लडते हुए इन सब को लज्जा भी नहीं आती! जरा इसका साहस और पराक्रम तो देखो अकेला ही हम' सबसे लाहा ले रहा है। यदि किसी ने मा का दूध पिया है और अपने आपको वीर कहलाने का अभिमान रखता है तो अकेला अकेला इसके सग क्यों नहीं जाता। हजारों मिल के एक पर टूट पडे यह कहाँ का न्याय है।
यह सुनकर जरासन्ध ने अपने वीर साथियो, सामन्तों, और सेनापतियों की परीक्षा लेने के विचार से कहा कि
हे मेरे महा पराक्रमी साथियो । इस वीर योद्धा से आप लोगों में से एक एक करके युद्ध करो, जो इसको पराजित कर देगा, उस ही को राजकुमारी रोहिनी वरण करेगी। __ जरासन्ध के ऐसे शब्द सुनते ही सर्व प्रथम महाराज शत्रुजय वसुदेव के साथ युद्ध करने के लिये प्रस्तुत हुए। दोनों का आमनासामना होते ही वसुदेव ने अपने विरोधी के वाणों को वीच ही में
जरा इसका साहस आनमा का दूध पिया अकेला इसके सग।