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जैन महाभारत आप किसी प्रकार की चिन्ता न करें । मेरे समर क्षेत्र में पदापण करते ही इन दुष्टों के दल प्रचण्ड तूफान के सामने मेघ घटाओ की भांति देखते ही देखते छिन्न भिन्न हो जायेंगे । मुझे इन सब लोगों ने अकुलीन घोषित किया हुआ है, पर इन्हें अभी पता लग जावेगा कि इस अकुलीन के बाण कैसे घातक और शस्त्राशस्त्र कैसे पानी वाले हैं।
इसी समय वसुदेव कुमार का साला विद्याधर दधिमुख भी दिव्य शस्त्राशस्त्रों से सुशाभित एक रथ मे सवार हो वहां आ पहुँचा और बड़ी नम्रता से कुमार वसुदेव को कहने लगा कि -
हे महाभाग ! आप इस रथ में सवार होकर अपने समस्त शत्रुओं के दांत खट्टे कर डालिये। सारथी बनकर आपके रथ सचालन का काये मै स्वय करू गा । तब वसुदेव वेगवती की माता अगारवती के द्वारा प्राप्त धनुष-बाण, तूणीर आदि शस्त्राशस्त्रों से सुसज्जित होकर रथ म जा बैठे। अब तो महाराज रूधिर के दो हजार हाथी छ हजार गजारोही, चौदह हजार घुड़सवार और एक लाख पदाति सैनिकों के साथ वसुदेव कुमार शत्रु सेनाओं से भिड़ जाने के लिए आगे बढ़े। उधर शत्रा की सेना का कोई अन्त न था। कुमार की इस चतुरङ्गिणी सैना के समक्ष शत्रओं ने अपनी अपार सैनाओं को भली भाँति व्यूह बद्ध कर लिया था। देखते ही देखते दोनों सैनायें एक दूसरे से भिड़ गई । रथ-रथों से, हाथी-हाथियों से, घुड़सवार घुड़सवारों से और पैदल पैदलों से टक्कर लेने लगे।
दोनों पक्षों की ओर से हो रही अजस्र बाण वर्षा के कारण समग्र नभीमण्डल आच्छाहि हो गया। ऐसा प्रतीत होने लगा कि प्रचण्ड मार्तण्ड भी कुछ घन्टों के लिए छुट्टी मना गये हों । बाण वर्षा के कारण उत्पन्न हुए धनान्धकार मे एक दूसरे से टकराते हुए शस्त्राशस्त्र बिजलियों के समान कड़ते हुए चमक रहे थे। खड्ग-चक्र गदा-परिध आदि अनक शस्त्री से शत्रुओं पर आक्रमण हो रहा था। चारों ओर का वातावरण कट कट कर गिर रहे मदोन्मत्त हाथियों की चिंघाडो, और घायलों की कराहों से व्याप्त हो गया । कहीं वीर पुरुष अपन प्रतिपक्षियो को ललकार रहे थे, तो कहीं उत्साह भरे घोड़े हिनहिना रहे थे, कहीं एक दूमरे से टकराती हुई कृपाणों की कड़कड़ाहट, तो कहीं तीरा की तडतडाहट से अखण्ड दिग-मण्डल गूज उठा था। प्रतिभटा के बाणों नया अन्य तोमर-गदााखड्ग आदि शस्त्रों से छिन्न-भिन्न हुए