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जैन महाभारत
तत्पश्चात् उस पल्ली पति ने अपनी उस पुत्री के साथ वसुदेव का विवाह कर दिया । इस विवाह का कारण पूछने पर राज कुमारी ने वसुदेव का बताया कि—
मेरे पितामह अमोघ प्रहरी अपने शत्रुओं से पराजित हो । इस
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एकान्त मँ आश्रय लेकर रहने लगे । अनेक राजा महाराजा मेरे
साथ विवाह करने के लिये लालायित थे पर मेरे पितामह ने उनमे से किसी के साथ भी मेरा विवाह करना स्वीकार नहीं किया। एक दिन कुछ ऐसे लोगो ने जिन्होंने पहले कोल्लयरपुर मे आपको देखा था, आकर पितामह से निवेदन किया कि महाराज पद्मावती के वियोग में विलाप करते हुए महाराज पद्मरथ के जामाता इस वन में आए हुए हैं । यह सुन "हा | काम बन गया" कहते हुए मेरे पितामह ने उन लोगों द्वारा आपको यहां बुला लिया। आपके यहाॅ पहुँच जानें पर मेरी सखियाँ मुझे कहने लगी पद्मश्री आज तेरा यौवन सफल हो गया ।' भगवान तुझ पर प्रसन्न हैं पद्मावती के प्रियतम ही तेरे पति बनेंगे बस इस प्रकार आपका मेरे साथ विवाह हो गया ।
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विवाहोपरान्त वसुदेव कुछ दिन वहां रहे । पद्मश्री के इसी समय एक पुत्र भी उत्पन्न हुआ, जिसका नाम जर रखा गया । इस पुत्र को गोद में लेते हुये वसुदेव ने कहा कि यह बालक तुम्हारे शत्रुओं को जीर्ण करेगा । इसीलिये इसका नाम जर रखा गया है।
-: वसुदेव की अध्यात्म चर्चा
जरकुम/र जब कुछ बडा हो गया तो वसुदेव पद्मश्री के राजमहलों से निकल कर बाहर भ्रमण करने के लिये चल पड़े। चलते-चलते वे कांचनपुर नगर में जा पहुचे । नगर के बाहर एक उपवन के एकान्त स्थान में पद्मासन लगाकर बैठे हुये एक यौगोराज को देखा। उन्हे देख वसुदेव ने विनयपूर्वक पूछा - "भगवन् आप किसका चिन्तन कर रहे है ?
योगीराज ने उत्तर दिया हे महाभाग । मैं प्रकृति पुरुष का चिन्तन कर रहा हूँ ।
वसुदेव ने जिज्ञासा प्रकट की कि वह पुरुष क्या है, और कैसे है ?
मुनिराज ने समझाया - वह पुरुष चेतन, निलय, अक्रिय निर्गुण,
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