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वसुदेव के अद्भुत चातुर्य
२२३ हे प्राणनाथ | इस प्रकार आपको पहिचान कर पिता जी ने मेरा आपके साथ विवाह कर दिया।
इस प्रकार वसुदेव और पद्मावती कभी जल विहार करते; कभी उद्यानों व उपवनों में भ्रमण करते हुए सानन्द समय बिताने लगे।
-:एक का वियोग दूसरी का सयोग:__एक दिन वे दोनों प्रकृति सुन्दरी का निरीक्षण करते हुए वन मे दूर निकल गये। वहां एक परम सुन्दर हस को देख पद्मावती वसुदेव से कहने लगी कि "प्राणनाथ उलिये इस सरोवर में चल कर जल क्रीडा करें।' यह सुनते ही वसुदेव पद्मावती के साथ सरोवर में उतर जल विहार करने लगे। जल में तैरते अठखेलियाँ करते घे बहुत दूर निकल गये तब वसुदेव को ध्यान आया कि अरे यह तो पद्मावती नहीं है, कोई दूसरी ही स्त्री है जिसने मुझे धोका देकर यहां तक लाने का प्रयत्न किया है यह 'सोचते ही उन्होंने उसे पूछा कि "सच बता तूं कौन है ?" और वसुदेव के यह पूछते ही वह सहसा अदृश्य हो गई अब तो वसुदेव जल से बाहर किल विलाप करते हुये पद्मावती को दू ढने लेगे कभी जल चर पपियों से पूछते हे हस, हे चक्रवातक तुमने मेरी प्रियतमा का कहीं देखा हो तो बता दो उसकी तुम्हारे ही समान सुन्दर गति थी और तुम्हारे ही समान वह अपने प्राणप्रिय अर्थात् मुझ से अलग नहीं रह सकती थी, हे भाई हरिण, यदि तुमने कहीं देखा हो तो तुम्ही बता दा उसके नेत्र तुम्हारे ही समान मनोहर और विशाल
थे।
इस प्रकार वे वन वन में भटकते हए पद्मावती को दृढ़ने लगे। अन्त में उन्हें “यह देखो पद्मावती यहाँ" की ध्वनि सुनाई दी। जानें के लिए अमृत के समान इस ध्वनि को सुन वसुदेव उसी का श्रनुमा करते हए आगे बढने लगे । चलते चलते वे एक पल्ली में जा उम पल्ली के सभी आदमी उनके स्वागत सत्कार में जुट गई उन्हें अपने साथ राज महलो में ले गये । वहाँ जाकर उन्हें कृ. एक कन्या को दिखाते हुए वसुदेव से कहा कि वह देव तुटत पद्मावतो देवी खडी है। यह सुन वसुदेव का हृदय कनन्दन हुआ। पर पास में जाकर देखने पर उन्हें पता चला कि दृगवनी नहीं प्रत्युः उसी के जैसी कोई दूसरी सुन्दरी है।