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* नवां परिच्छेद *
___ वसुदेव के अद्भुत चातुर्य
एक बार रात्रि को सोये हुए वसुदेव को ऐसा अनुभव हुआ कि
उन्हें कोई आकाश में लिए जा रहा है । अांख खोलने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि कोई खर मुखी स्त्री उन्हें दश्रिण की ओर ले जा रही है। यह देखते ही उन्होंने उसके पीट पर जोर से एक ऐसा मुक्का मारा कि पीडा से बिलबिलाती हुई उस स्त्री ने उन्हें वहीं फेंक दिया । आकाश म से उसके हाथों मे से छूटकर वे नदी मे आ गिरे। धीरे धीरे वे नदी को पार कर किनारे आ पहुचे।
उस समय रात्रि का अन्तिम पहर था। उषा काल की लालिमा से दशों दिशाएँ अनुरजित हो रही थी। प्रभात के उस मद पकाश में उन्होंने देखा कि पास ही कुटियाओं में से अग्नि का धु आ निकल रहा है। हिरणों के बच्चे स्वच्छन्द और निर्भय रूप से अक्षोट, प्रियाल, कोल, तिन्दुक, इगुदी, कसार, और निवार आदि (धान्य विशेष) तथा फलों से भरे पूरे पक्षियों के कलरव से मुखरित वन में धूम रहे हैं। ऐसे सुन्दर आश्रमपद को देखते ही वसुदेव तत्काल उस आश्रम के कुलपति महर्षि के चरणों में पहुच उन्हें प्रणाम कर पूछने लगे कि ऋषिराज ! यह कौन सा प्रदेश है।
उन्होंने उत्तर दिया बहुत अच्छा आप तो गगनचारी प्रतीत होते हो, जो इस प्रदेश को जानते ही नहीं, यह गोदावरी नदी है और श्वेत जनपद । अब आप यहाँ कमल पत्रों में फल पुष्पों का आहार स्वीकार कर हमारा आतिथ्य ग्रहण कीजिए।
इतने मे ही वसुदेव की दृष्टि एक अत्यन्त सुन्दर युवक पर जा पड़ी। उसके मस्तक पर पडी चिन्ताओं की रेखाओं से स्पष्ट लक्षित होता था कि वह किसी गहरी चिंता मे फसा हुआ है । उनको इस प्रकार चिन्तित देख वसुदेव ने उससे पूछा महाभाग आप कौन हैं, इस प्रकार चिंतित क्यों प्रतीत होते हैं, कोई मेरे योग्य सेवा हो तो बताइये । आप की