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जैन महाभारत
कनकवती का सातवां भव कुबेर ने इस प्रकार अभूत पूर्व वृतान्त सुनाते हुए वसुदेव से कहाकि हे यद्कुल भूषण । मृत्यु के पश्चात महाराज नल का जीव ही मेरे रूप में उत्पन्न हुआ है। अर्थात् पूर्व भव का नल ही इस भव में मैं कुबेर बना हूं। दमयन्ती भी मेरे साथ मेरी रानी (देवी) बनी, देव योनि में रहने के कर्म समाप्त होने पर वह दमयन्ती ही स्वर्ग से च्युत होकर महाराज हरिश्चन्द्र के यहाँ उनकी पुत्री कनकवती के रूप में उत्पन्न हुई है । पूर्व भव की पत्नी होने के कारण ही कनकवती के प्रति मेरे हृदय मे मोह उत्पन्न हो गया । और इसी लिए मैं इसे देखने के लिए यहाँ आ पहुँचा। हे वसुदेव । इस प्रकारका यह मोह सैकड़ों जन्म जन्मान्तरों तक भी जीव का पीछा नहीं छोडता । मुझे यह देखकर परम प्रसन्नता हुई है कि कनकवती को तुम्हारे जैसा रूपवान् , बली, साहसी और धैर्यशाली पति प्राप्त हुआ और मैं तुम्हें यह भी बता देना चाहता हूँ कि कनकवती इमी जन्म में अपने सभी प्रकार के कर्मों का क्षय कर मोक्ष को प्राप्त हो जायगी।
इस प्रकार कनकवती के पूर्व जन्म का वृत्तान्त बताकर कुबेर तो वहाँ से अन्तधान हो गये। ओर वसुदेव कनकवती के साथ विवाह कर सानन्द समय बिताने लगे।
-इत्यलम---