SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कनवकती परिणय २१५ इस समय उनका फिर राज्याभिषेक हुआ । इस महोत्सव के अवसर पर सहस्रों राजा-महाराजा नानाविध उपहार लेकर उपस्थित हुए। नल ने भी उनका बहुत आदर सत्कार कर उन्हें सम्मानित किया। इस प्रकार महाराज नल कई वर्षों तक न्यायपूर्वक राज्य करते रहे। अन्त में एक दिन दिव्य रूपधारी निषधदेव अपने पुत्र नल के पास आकर कहने लगे हे वत्स । इस भवारण्य में आत्मज्ञान रूपी धन को विषय वासना रूपी लुटेरे लूट रहे हैं। यदि मानव शरीर पाकर भी तुम उसकी रक्षा न कर पाये तो तुम्हारा पुरुषार्थ किस कामका । अतः अब तुम्हें दीक्षा ग्रहण कर आत्मकल्याण के मार्ग पर अग्रसर हो जाना चाहिए । इस प्रकार दीक्षा का सन्देश देकर निषध देव अन्तध्यान हो गये। उसी समय एक अवधि ज्ञानी मुनिराज वहाँ आ पहुँचे, उन्होंने नल को बताया कि पूर्वभव में मुनिराज को दुग्ध का आहार' दान आदि देने के कारण सातवेदनीय कर्म का बन्धन किया था उसी के फल स्वरूप तुम्हें यह राज्य प्राप्त हुआ। किन्तु बारह घन्टे तक तुमने अपने साथी साधुओं से अलग करवा, और अनेक प्रकार के कष्ट पहुचाये इसलिए बारह वर्ष का तुम्हें दमयन्ती से वियोग सहन करते हुए अनेक दुःख देखने पडे। __ तदनन्तर नल ने बडे धूम धाम से दीक्षा ग्रहण कर ली। और कई वर्षों तक लम्बी साधना में लगे रहे । किन्तु दमयन्ती के प्रति उनका आसक्ति का भाव बीच बीच में जागृत हो उठता, उनके इस प्रकार के आसक्ति के भाव को देख एक बार आचार्य ने उन्हें सघ से पृथक भी कर दिया। किन्तु उन्हें अपने इस कृत्य पर बडा दुःख हुआ, वे गुरु जी से क्षमा मांग फिर सघ में सम्मिलित हो साधना में तत्पर हो गये। दीर्घकाल तक साधना करने के उपरान्त उन्होंने अनशन व्रत धारण कर देह त्याग कर दिया। इधर दमयन्ती ने भी उन्हीं का अनुसरण कर अनशन व्रत के द्वारा शरीर त्याग दिया । मृत्यु के पश्चात् वे दोनों स्वर्ग लोक के अधिकारी हुए। १ देखिये मम्मन और धम्मिल की कहानी पृष्ट २००-२०१ पर 16
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy