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जैन महाभारत चिन्ता निवारण के लिए प्रयत्न करूगा । वसुदेव के ऐसे म दल वचन सुन कर मुनिराज ने उत्तर दिया कि हे सौम्य । यह पोतनपुर के अधिपति का अमात्य सुमित्र है, यह स्वभाव से ही स्वामिभक्त और बड़ा प्रजा हितेषी है। इसकी कुछ सहायता कर उसे कृतार्थ कीजिए।
यह सुनकर 'वसुदेव ने उत्तर दियाः-आज्ञा दीजिए जो भी कुछ हो सकेगा यह सेवक अवश्य करेगा। आपके कार्य साधनके लिए कोई कसर उठा न रक्खेगा।
तब वह युवक कहने लगा कि मैं श्वेत जनपद के महाराज विजय का सचिव और सखा हूँ। एक बार कोई भारी धनिक सार्थवाह पोतनपुर में आ पहुंचा, उसके दो स्त्रियाँ थी, पर पुत्र एक था । उसी समय उस साथैवाह की मृत्यु हो गई। सेठ के मरते ही उसकी दोनों पत्नियों मे झगडा होने लग पड़ा । दोनो ही कहती कि इस लड़के की सगी मा मैं हू, क्यों कि लडके की सगी माता ही उस सारी सम्पत्ति की वास्तविक अधिकारिणी हो सकती थी।
इस प्रकार दोनों झगडती झगडती राजा के पास आ पहुँची। राजा के पास निर्णय करने का कोई आधार नहीं था. उन्होंने यह कार्य मुझे सौप दिया कि तुम इनके विवाद का निर्णय करो। यह एक बड़ी उलझी हुई समस्या थी, क्योंकि दोनो ही अपने आपको सगी मा बताती थीं।
और लड़का भी दोनी को माँ कहकर पुकारता था, कहीं से अन्य किसी प्रकार की कोई साक्षी भी उपलब्ध होने की सम्भावना न थी। इसलिए दोनों का विवाद सुनकर मैंने 'अच्छा विचार करेंगे' कहकर उन्हे उस समय तो विदा कर दिया, किन्तु कुछ समय पश्चात् वे फिर राज दरबार मे आ पहुंची, यह देख महाराज बड़े ऋध हुए उन्होने भर्त्सना करते हुए मुझ से कहा ऐसी जटिल समस्याओ के समाधान मे ही तो मन्त्रियों की वास्तविक योग्यता का पता चलता है। इस लिए जब तक तुम इस विवाद का निर्णय न कर लो तब तक मेरी राज्य सभा मे आने की आवश्यकता नहीं।
तब मैंने सोचा कि राजाओ की प्रसन्नता मे कुबेर का और उनके कोप मे यम का निवास होता है इसलिये राजकोप से बचने की दृष्टि से मैं नगर छोड़ गुप्त रूप से इस तपोवन मे चला आया हू । यही मेरी चिन्ता का प्रमुख कारण है।