SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गडिया, बलदेव गडिया, हरिवश गडियाग्रो" आदि वर्णन पाया जाता है; किन्तु दुर्भाग्य से इन आगमो की प्राप्त नही हो रही है, परन्तु इनका अन्य आगमो मे नाम का उल्लेख मिलता है । जिनमे कि महाभारत से सम्बधित विषय सामग्री विस्तृत रूप में थी । फिर भी विद्यमान ग्रागमो मे यथास्थान महाभारत नायको तथा उनके पूर्व ऋद्धि परिवार पूर्वजो का वर्णन स्पष्टतया मिलता है । हरिवश की उत्पत्ति भी जिसमे महाराज यदु वसुदेव, समुद्रविजय, श्रीकृष्ण, अरिष्टनेमी, कस के पिता उग्रसेन आदि उत्पन्न हुए शास्त्रो मे उल्लिखित है" । , यहाँ तक कि श्रीकृष्ण की माता देवकी की आठ सन्तानो तथा कौरव पांडव, धृष्टद्युम्न, द्रौपदी, रुक्मणी, प्रद्युम्न, सत्यभामा, जाम्बवती, साम्ब आदि कुमारो तथा रानियो का वर्णन भी पाया है । फिर काव्य ग्रन्थो का तो कहना ही क्या, उनमे तो सविस्तार वर्णन है ही । अत. अब यह कहना कि श्रीकृष्ण और बलभद्र आदि कर्मावतारो को जैन सिद्धान्त स्वीकार नही करता सर्वथा भूलमात्र ही होगी । हाँ यह बात अलग है कि उसकी मान्यता भिन्न रूप मे है | इस विषय को शास्त्रकारो ने स्वीकृत किया है या नही यह नीचे पाठ से स्वय ही स्पष्ट है कि दुर्धर रणागरण मे, धनुर्धर, धीर, सौम्य, युद्धकीर्ति पुरुष, राजकुल तिलक, अर्ध भरत स्वामी, विपुल कुल समुद्भव, उज्जवल कौस्तुभमणी व मुकुटधारी, अजित रथ, हल, मूसल, कनक, शख, चक्र, गदा, शक्ति, नन्दक, आदि शस्त्राशस्त्रो २ समयाग सूत्र, नन्दी सूत्र । ३ अन्तकृत दशाग, उत्तराध्ययन । ४ इन्हीं महाराज यदु के नाम पर हरिबश ही यदुवंश के नाम से पुकारा जाने लगा । ५ स्थानाग सूत्र, कल्प सूत्र । १ ज्ञाता धर्मकथांग ।
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy