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के धारण करने वाले प्रष्टतम् प्रशस्त लक्षणयुक्त, गजेन्द्र गति वाले, मस्त को पनो के समान मद व गम्भीर स्वर वाले मनुष्यो मे नरसिंह, नरपति, नरेन्द्र, नर उपभ, नील व पीत वसनो के धारण करने वाले सन और केशुन दो भाई थे। जो वलदेव और वासुदेव के नाम से विख्यात है।
इसीलिए यह ग्रन्य नायको के वश की उत्पति, उनका उद्भव तथा विकास प्रादि से प्रारम्भ किया गया है और आगे उनका जीवन जिन-जिन कार्य-क्षेत्रो में परिवर्तित हया, दिया गया है। वे स्वय तथा उनके कार्य कितने महान् थे, यह तो यह ग्रन्थ बतायेगा ही साथ साथ अपने महाभारत नाम को सिद्ध करेगा। क्योकि महाभारत का अयं वर युद्धही नहीं जमा कि प्रचलित है, बल्कि उनके समद कल बिल कि ऋद्धिमान तथा शिष्टता, सभ्यता उन्म डिगोर मुसे वह भारत ने महाभारत महा.
इस शांगिनना उपादेय है इसका निर्णय तो पाठन करेंगे फिर भी सैद्धान्तिक, व्यवहारिक प्रादि अनेको दोप रह गये होगे । सर्वज्ञ की भांति यथार्थ दृष्टि से तथ्य प्रतिपादन की क्षमता का प्राप्त होना तो असम्भव है फिर भी अपनी पोर में किसी व्यक्ति विशेष की मान्यता को प्रश्रय न देकर यथार्थ की पोर बढता है तथा पक्षपात रहित हो उसका मूल्यांकन करता है। प्रूफ सशोधन और प्रेस की त्रुटियां पा रही हैं। इन्हें सुधार कर परें । २६ जनवरी १९५७
मुनि शक्ल
२ समवायाग-उत्तम पुरुष अधिकार ।