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मदनवेगा परिणय के समय गुप्त रुप मे एक दूत को उनके पास भेजकर उन्हें अपने यहाँ भान के लिये निमन्त्रित किया। वसुदेव सभवतः उसके निमन्त्रण को स्वीकार कर गुप्त रूप से उसके साथ भी चले भी जाते किन्तु उन्होंने
सो समय एक नाटक देखते हुए सुना कि___ महाराज नमि का पुत्र वासव विद्याधर था। उसके वंश में आगे चलकर एक पुरहूत नामक वासव हुआ । एक दिन पुरुहूत हाथी पर सवार होकर भ्रमण करता हुआ गोतम ऋषि के आश्रम में जा पहचा। वहा पर गोतम पत्नी अहिल्या को देख कामान्ध हो वोखे से उसके साथ रमण करने लगा। पुरुहूत का ऐसा दुवृत देख कुपित हुए गौतम ऋषि ने शाप देकर उसे नपु सक बना दिया। यह वृत्तान्त सुनकर वसुदेव सावधान हो गये और उन्होंने गुप्त रूप से प्रियगुमन्जरी के पास जाना अस्वीकार कर दिया।
उसी दिन रात्रि को वसुदेव बन्धुमति के साथ अपने शयनकक्ष में सो रहे थे कि अर्घनिद्रित अवस्था में उन्होने एक देवी को अपने सामने खडी देखा। उसे देखते हुए विस्मित होकर उठ बैठे और मन ही मन सोचने लगे कि क्या यह कोइ स्वप्न है ? या सचमुच ही कोई मेरे सामने देवी खडी है ? उन्हे इस प्रकार दुविधा में पड़े देख उस देवी ने उनके सदेह का निराकरण करते हुए कहा कि "हे वत्स ! तुम घबरात्रो मत यह कोई स्वप्न नहीं प्रत्युत मैं सचमुच तुम्हारे सामने खड़ी । ____ इससे पूर्व कि वसुदेव उससे कुछ पूछे, वह उन्हें बार शोक वाटिका में ले गई और वहाँ पर वैगामा ---