________________
महनवेगा परिणय
१७३ इस पर वसुदेव ने उन्हे मान्त्वना देकर धर्म पर दृढ़ रहने का परामर्श दिया । यहाँ से चलकर वसुदेव श्रावस्ती नगरी में पहुँच गये। वहाँ पर एक उद्यान में उन्होंने ऐमा मन्दिर देखा, जिसके तीन द्वार थे। उसके प्रमुख प्रवेशद्वार पर बत्तीस ताले लगे हुए थे। इसलिये उन्होंने दूसरे द्वार से मन्दिर में प्रवेश किया। वहाँ पर तीन विचित्र मूर्तियाँ देखी। पहली मूर्ति किसी ऋषि की थी दूसरी किसी गृहस्थ की और तीसरी तीन पैर वाले भैंसे की। इन विचित्र मूर्तियों को देख उन्होंने एक ब्राह्मण से पूछा कि हे ! महाभाग यह तीनों विचित्र मूर्तियाँ यहां क्यों प्रतिष्ठित हैं। इनका कुछ रहस्य बताकर मेरी उत्सुकता शान्त कीजिये । इस पर उसने कहा___ यहाँ पर जितशत्रु नामक एक राजा राज्य करते थे। उनके मृगध्वज नामक एक पुत्र था। उसी समय कामदेव नामक एक वणिक पुत्र भी यहाँ रहता था। एक बार उसके अपनी पशुशाला में जाने पर उस के पशुपालक दडक ने बताया कि वह एक भैंस के पाच बच्चे मार चुका है । उस समय उसके छटा बच्चा उत्पन्न हुआ था। जिसकी दीनदृष्टि को देखकर दडक के हृदय में दया श्री भावना जागृत हो उठी । वह सोचने लगा कि यह तो काई जन्नान्तर का उत्कृष्ट प्राणी प्रतीत होता है। अपने किन्ही पूर्व सत्कारों के कारत इस जन्म में भैस की योनी में आ गया है। इसलिये इसे नहीं मारना पाहिये । यह सुनकर कामदेव ने भी उसे अभयदान देदिया और राजा से भी श्राज्ञा निकलवा दी कि उसे कोई न मारे।