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मदनवेगा परिणय मुनिराज को देखते ही पूर्व भव के वैर के कारण महाराज विद्युको क्रोध आ गया और वे उन्हें वहां से उठाकर दक्षिण वैताट्य वरुण नामक चोटी पर ले आये। जहां पर हरिवती, चडवेगा, जवति, कुसुमवति और स्वर्णवति इन पाचों नदियो का सगम होता । उस पचनद क पास ही मुनिराज को छोड़ अपने राज्य प्रासादों में । पहुँचा। प्रात काल होते ही सब विद्याधरों को कहा 'विद्याधरो ! राज रात्रि को मैंने स्वप्न में एक बड़े भारी शरीर वाला भयकर पात देखा है। यदि हम उसका तत्काल नाश नहीं कर देंगे तो वह में सब का सर्व सहार कर देगा। इसलिए आप लोग इसी समय जा र उसका काम तमाम कर दें।
विद्य दंष्ट्र की ऐसी आज्ञा पाते ही सब विद्याधर एकत्रित हो मुनि|ज सजयन्त के पास जा पहुँचे । और उन पर नाना प्रकार के उपर्ने रने लगे, अपने ऊपर हो रहे इन घोर उपसर्गो के देर नुनिरानने प्रमाधि धारण कर ली और क्षण भर में घात्रि कर्ने न नारा कर मंतकृत केवली हो गये। . जिस समय मुनिराज पर विद्याधर इस प्रकार रहे थे
वयोग से उन अरिहन्त के ज्ञान महोत्सव केन्दिरी वैनन्द का जीव धरणेन्द्र भी वहा आ पहुँचा और कन्या को देन उन्हे फटकारते हुए कहने लगा "अरे दु तुदन उप पर अकारण ही इतने उपसर्ग क्यों च्चेि हैं। के परिवान स्वरूप तुम्हारी सर विद्याएँ नष्ट हो जान जाओगे।' ___ धरणेन्द्र के ऐसे क्रोध मरं वन
विचार हाथ जोडकर प्रार्थना करने गरि क न्न ड नहीं है। हम तो राजा विद्यकीन मुन्तिान में मगरने लिए पाए थे।
उ न्ह उत्पात दे।" इस पर घरद उन्ही तु विदारप्ट्र का यह शारदेटिइन् र
" सिद्धि नहीं होगी जब चाहन करेगा। यही कारण है कि इन द कि होती हैं।