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मदनवेगा परिणय देना चाहता हूँ । यह सुनकर वे सब लोग वसुदेव की प्रशसा करने लगे कि यह तो कोई मनुष्य नहीं दिखाई दे रहा । यह तो कोई वास्तव में कुबेर के घर में रहने वाला कमलाक्षयक्ष है । अथवा स्वय कुबेर ही है जो इस प्रकार उदारता पूर्वक द्रव्य दान दे रहा है। वे लोग इस प्रकार बाते कर रहे थे कि राज-पुरुषों ने आकर वसुदेव को घेर लिया, और कहने लगे कि चलो तुमको महाराज बुला रहे हैं।
इस पर वसुदेव उनके साथ जब चलने लगे तब दूसरे सब लोग भी उनके पीछे हो लिये । वे लोग आपस में बातें कर रहे थे कि ऐसे धर्मात्मा को राजकुल में न जाने क्यों बुलाया जा रहा है।
राजसभा में पहुँचते ही महाराज को वसुदेव के आने की सूचना दी गई । राजा ने उन्हें एकान्त में बुलाकर बहुत बुरी तरह से जकड़ कर बाँध दिया और मारे क्रोध के दॉत पीसते हुए कहना शुरु किया कि ले ओर जुआ खेल ले || वसुदेव के बन्धन की सूचना पाकर सारा शहर एकत्रित हो गया । वे लोग हाय २ करके चिल्लाने लगे कि इस बेचारे को बिना किसी अपराध के ही मारा जा रहा है। तब सहानुभूति शील राजपुरुषों से वसुदेव ने पूछा कि मुझे किस कारण बाधा' गया है। इस पर उन्होंने वसुदेव को समझाया कि कल किसी ज्योतिषी ने महाराज जरासघ को कह दिया कि कल तुम्हारा वध करने वाले का पिता यहां आयेगा और वह जुए मे बहुत सा रुपया जीतकर गरीबों को बांट देगा। इसीलिए जरासघ ने तशाला में अपने विश्वास पात्र व्यक्ति नियुक्त कर दिये थे। उनकी सूचना से ही जरासघ ने तुमको पकड लिया है।
यह सुन वसुदेव मन ही मन सोचने लगे कि अपने जरा से प्रमाद के कारण ही इस प्रकार वधन में पड़ा हूँ। यदि में महलों में जाने से पूर्व हो राज पुरुषों से पूछ लेता कि आप मुझे क्यों महलों में ले जा रहे है तो मै महलो में जाता ही नहीं । अथवा अपना पराक्रम दिखाकर सब लोगों को ढकेलता हुआ वहार निकल जाता । किन्तु अब क्या हो सकता है । इस प्रकार विचारों में मग्न वसुदेव का राजपुरुष गाडी मे बैठाकर ले चले । राजपुरुषों को आज्ञा दी गई थी कि वे उन्हे जीते जी बकरे की खाल में बढकर दूर कहीं फेक आयें।
तदनुसार राजपुरुष गुप्त रूप से उन्हें नगर से बाहर ले गये और जीते जी चकरों को खाल में बंद कर किसी वहुत ऊचे पहाड़ पर ले