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__ मात्तङ्ग सन्दरी नीलयशा __ १५३ तुम दूसरी ओर मुह करके क्यों बोलती हो । उसने उत्तर दिया कि मेरे मुह में से लहसुन के जैसी दुर्गन्ध आती है इसलिये मैं दूसरी ओर मुह करके बोलती है। इस पर वसुदेव ने औषधि के प्रयोग से उसके मुंह की दुर्गन्ध को धीरे-धीरे दूर कर दिया। यह देख सेठ ने अपनी उस रत्नवती नामक पुत्री का तथा दासपुत्री लहसुणिका का उन्हीं के साथ विवाह कर दिया।
विवाह के उपरान्त वर्षा ऋतु में एक दिन सार्थवाह ने वसुदेव से कहा कि हे पुत्र, महापुर नामक नगर में आजकल इन्द्रमहोत्सव हो रहा है। यदि आपकी इच्छा हो तो हम लोग भी वह उत्सव देखने के लिये चले । इस पर वसुदेव की स्वीकृति पा वे लोग उत्सव देखने के लिये चल पडे । वहाँ पहुच कर नगर के बाहर बने हुए एक जैसे सब नये भवनों (मकानों) को देख वसुदेव ने पूछा- यहा पर ये सब नए मकान शून्य से क्यों दिखाई देते हैं ? तब सार्थवाह ने उत्तर दिया कि
“यहां के महाराज सोमदेव की पुत्री सोमनी है । महाराज ने उसके विवाह के लिये स्वयवर रचा था। उस स्वयवर में हसरथ, हेमागद, अतिकेतु, माल्यवन्त, प्रभकर आदि बडे बडे रूप कुल ओर यौवन से युक्त राजा महाराजा आये थे। उन राजाओं के ठहराने के लिये ही इन भव्य प्रासादों का निर्माण किया गया था। पर उनमें से किसी ने भी अपने आपको कुमारी सोमश्री के योग्य सिद्ध न किया, इस लिये वे सव वापिस अपने-अपने नगरों को चले गये । वह बालिका अभी तक कु वारी ही है। ___ इस प्रकार बातचीत करते हुए वे लोग नगर के मध्य में स्थित इन्द्रस्तभ के पास जा पहुंचे। वसुदेव ने उस स्तम्भ को नमस्कार कर ज्योंही आगे बढ़ने की तैयारी की कि इतने में रथ में बैठकर आती हुई राज-परिवार की महिलाए दिखाई दे गई। ये महिलाएं अभी तक इन्द्रस्तम्भ से बहुत दूर थीं, कि दूसरी ओर से एक मदोन्मत्त हाथी बन्धन तुडाकर जन समुदाय को चीरता हुआ वहां
आ पहुंचा । उसने वहा आते ही बड़ा भयकर उपद्रव मचाना शुरू कर दिया। वह किसी को पैरों से कुचल डालता तो किसी को सूड में उठाकर कहीं का कहीं फेंक देता। घूमता-घूमता वह हाथी राजकुमारी