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जैन महाभारत के रथ के सामने जा पहुंचा। लोगों को तो अपने ही प्राणों के लाले पड़े हुए थे, वहाँ भला राजकुमारी को बचाने का साहस कौन करता । राजकुमारी को इस प्रकार भयकर सकट मे देख कर वसुदेव तत्काल वहां आ पहुचे और हाथी का उससे पीछा छुड़ाने का प्रयत्न करने लगे। वसुदेव का अपने सामने देख वह हाथी और अधिक उत्तेजित हो उठा और राजकुमारी को छोड़ वसुदेव के पीछे पड़ गया। वसुदेव तो ऐसे मदोन्मत्त हाथियों को वश करने मे चतुर थे ही, उन्होंने नाना प्रकार के कौशलों से काम लेकर उस मदोन्मत्त हाथी पर काबू पा लिया। हाथी के शान्त हो जाने पर उस राजकुमारी को मूञ्छित अवस्था मे देख होश में लाने के लिये पास ही एक मकान मे उठाकर ले गये । अनेक प्रकार के उपयुक्त उपचारो से उस अत्यन्त त्रस्त और भयभीत राजकुमारी को जब चेतना आई तो उसकी दासियां उसे अपने साथ राजमहलों में ले गई। ___इस महापुर नगर में ही रत्नवती की एक बहिन का विवाह कुबेर नामक सार्थवाह से हुआ था, उसे पता लगते ही वह वसुदेव को तथा अपने पिता को अपने घर ले गई। वहां पर उसने उनका भोजन आदि के द्वारा यथोचित आदर सत्कार किया। थोड़ी देर पश्चात् महाराज सोमदत्त का मंत्री वहा आ पहुँचा उसने वसुदेव को प्रणाम कर निवेदन किया कि, यह तो आपको विदित ही है कि हमारे महाराज के सोमश्री नामक एक राजकुमारी है। महाराज ने पहिले उसका स्वयंवर पद्धति से विवाह करना निश्चित किया था, किन्तु इसी समय सर्वाण अनगार (साधु) के केवल ज्ञान महोत्सव मे जाते हुए देवताओं को देखकर उसे जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया इसलिये उसने स्वयवर का विचार छोड़ दिया और तभी से वह मौन धारण किये हुए है।
राजकुमारी की यह अवस्था देख महाराज अत्यन्त चिन्तित रहने लगे। उन्होंने उसकी अभिन्न सखि को बुलाकर कहाकि हमारी बेटी किसी को अपने हृदय का भाव नहीं बताती, तुम अपने विश्वास के द्वारा यदि उसके हृदय की बात जान सको तो हमारी यह चिन्ता दूर हो जाये, इस पर सखि ने उसके हृदय की बात जानने के लिये उससे कहा कि हे सखि | तुम्हारे इस प्रकार मौन धारण कर लेने से महाराज अत्यन्त चिन्तित रहते हैं। तुम्हारी अवस्था विवाह के योग्य हो गई है