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________________ मात्तग सुन्दरी नीलयशा १५१ ओर ऑख लगाये बैठे है। एक बार उन्होंने मेरे जामाता-इन्द्रशर्मा को तुम्हें ले आने को भेजा था किन्तु तुम मागे में पालकी से उतर कर कहीं दौड गये थे। किन्तु अब तुम स्वय ही इधर आ निकले हो अतः तुम स्फुल्लिगमुख अश्व का दमन करो और कपिला से विवाह कर लो _ वनमाला के पिता की बात सुनकर वसुदेव ने विचार किया कि मुझ सहज ही गौरव प्राप्त हो रहा है अतः मुझे यह कार्य कर ही लेनी चाहिए । यह सोचकर उन्होंने अश्व के दमन तथा कपिला के विवाह करने की स्वीकृति वसुपाल को दे दी। तत्पश्चात् वसुदेव के यहां आने तथा अश्वदमन आदि की स्वकृति की सूचना वसुपाल ने राजा को। दे दी। सूचना के प्राप्त होते ही राजा कपिल ने स्फुलिंगमुख अश्व को छोड़ दिया। जिसे देखते ही देखते वसुदेव ने सबके सामने पछाड़ दिया और कपिला के साथ विवाह कर लिया। इसके बाद वे अपने श्वसुर और अपने साले अशुमान के आग्रह से कुछ काल तक वहीं ठहरे। इसी बीच में कपिला से उनको एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम कपिल रखा गया। एक दिन वसुदेव कुमार अपने श्वसुर की गजशाला में गये । वहाँ पर कौतुहल वश वे एक हाथी की पीठ पर चढ़ गये । वह हाथी उन्हें आकाशमार्ग में ले उडा। उसकी यह कपट लीला देखकर वसुदेव ने उसके ऊपर बलपूर्वक एक मुष्टिक प्रहार किया। मुष्टिक के लगते ही वह नीचे एक सरोवर मे जा गिरा। (यह हाथी का रूप धारण कर वही विद्याधर आया था जो नीलयशा के विवाह के समय उनके पिता से युद्ध करने आया था और बाद में ह्रीमान् पर्वत से मोर बनकर नीलयशा को उडाकर ले गया था।) इस सरोवर से बाहर निकलकर वसुदेवकुमार सालगुह नामक नगर में गये । यहा पर उन्होंने राजा भाग्यसेन को धनुर्वेद की शिक्षा दी थी। एक दिन भाग्यसेन के साथ युद्ध करने के लिये उसका अग्रज मेघसेन नगर पर चढ़ आया परन्तु वसुदेव कुमार ने उसे बुरी तरह मार भगाया । इस युद्ध में वसुदेव का पराक्रम देखकर दोनों राजा प्रसन्न हो उठे । भाग्यसेन ने प्रसन्न होकर अपनी पुत्री पद्मावती का तथा मेधसेन ने अपनी पुत्री अश्वसेना का विवाह वसुदेव से कर दिया। इस प्रकार कुछ समय बिताकर वसुदेव ने वहाँ से आगे के लिए प्रस्थान किया।
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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