________________
जैन महाभारत से उत्पन्न मित्रश्री नामक एक पुत्री थी जिससे वहा उनका विवाह किया। ___ इन्हीं धनमित्र सार्थवाह के घर के पास ही सोम नाम वाला ब्राह्मण रहता था। उसके धनश्री प्रमुख पांच कन्याएँ तथा एक पुत्र था। यह लड़का बुद्धिमान तो अवश्य था किन्तु मुह से तुतलाता था अतः माता पिता बड़े उदास रहते थे।
एक दिन मित्रश्री ने वसुदेव से निवेदन किया कि हे आयपुत्र ! सोम का पुत्र ज्ञानादि पढ़ने मे अशक्त है क्योंकि इसके जिह्वा मे कोई ऐसा विकार है जिससे कि यह शुद्ध उच्चारण नहीं कर सकता । यदि आप इसकी चिकित्सा कर देखें तो यह अध्ययन के योग्य हो जायेगा। इस पर वसुदेव ने अपनी प्रिया के निवेदन पर उस बालक को बुलाया
और उसके उन जिह्वा तन्तु को जो कि बढ़े हुए थे और बोलने में रुकावट डालते थे काट दिए । जिसके फलस्वरूप वह उसकी वाणी गंभीर और स्पष्ट बन गई और वह अध्ययन करने लगा। इस अपूर्व चमत्कार से प्रसन्न हो उन्होंने धनश्री का विवाह वसुदेव के साथ कर दिया। इस प्रकार देवांगनाओं के सदृश उन कन्याओ के साथ क्रीड़ा करते हुए उन्हें वहां बहुत समय बीत गया।
एक दिन वसुदेव ने बैठे २ विचार किया कि यहां से अब मुझे चलना चाहिए अधिक देर तक ससुराल में ठहरने से मनुष्य घृणा का पात्र बन जाता है।
अत वहा से वे वेदसाम नगर की ओर गये । वहाँ वे एक उद्यान में विश्राम करने के लिए घुसे कि अनायास ही इन्द्रशर्मा की स्त्री . वनमाला से उनकी भेट हुई । वनमाला ने वसुदेव को "देवर" शब्द से सम्बोधित करते हुई उनके सामने अपनी आत्म कथा सुनाने लगी। पश्चात् वह उन्हें अपने साथ अपने घर ले गई। वहां पर उसने अपने पिता वसुपालित से उसका परिचय कराया कि यह मेरा सहदेव नामक देवर है । वसुपाल ने अपना निकट सम्बन्धी जान वसुदेव को यथोचित
आदर सत्कार दिया । पश्चात् वह उनसे इस प्रकार कहने लगा 'हे कुमार इस नगर के राजा का नाम कपिल है और उनके कपिला नामक एक अत्यन्त स्वरूपवान कन्या है । भृगु नामक ज्योतिषी ने बतलाया था कि उम्मका विवाह वसुदेव कुमार के साथ ह गा। वे इन दिनों गिरीतट नामक नगर में आये हुए हैं। वे यहां आकर स्फुल्लिगमुख नामक अश्व का दमन करेंगे।' हे वत्स ! उसी समय से महाराज कपिल तुम्हारी