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________________ १५ आध्यात्मवाद का आश्रय लेना पडा है । और भौतिकवाद तो मनुष्य को स्वतन्त्र न बना उल्टे बन्धनो मे बाधता है । यही कारण है कि विश्व के बडे बडे प्रजा सत्ताको प्रवृतको के भौतिक थपेडो ने उनके जीवन को नारकीय बना डाला था । हाँ तो अब मुझे मूल विषय पर आना है जिसके लिये मार्ग बनाने का ऊपर प्रयास किया गया है । पाठको के हाथ मे प्रस्तुत ग्रन्थ अर्थात् महाभारत एक घटना ग्रन्थ है । इसमे आध्यात्म तथा भौतिक दोनो साधनो का वर्णन है। यूँ तो इसे धार्मिक ग्रन्थ की मान्यता प्राप्त है किन्तु वस्तुत: यह एक ऐतिहासिक साहित्य है जिससे मानव जीवन के बदलते चित्रो का अकन, उसमे होने वाले परिणाम तथा तात्कालिक समार पर पडने वाले प्रभाव का विस्तृत वर्णन है । जैनधर्म तो इसे धार्मिक मान्यता देने को तैयार ही नही, क्योकि जिस घटना मे सहार, वैमनस्य, कषायो की प्रबलता अथवा सासारिक व्यवहारो का ही समावेश तथा सम्यक् ज्ञान, दर्शन आदि तत्वों के विपरीत कार्य कलाप पाये जाते हैं वह धार्मिक ग्रन्थो की कोटि मे नही आ सकता । फिर भी वर्तमान स्थिति व सम्यक् दर्शन श्रादि ग्राह्य तत्वो के धारण करने वाले राजा व अन्य साधको का जीवन चरित्र अवश्य मिलता है । उपस्थित गद्य काव्य की घटनाओ से स्पष्ट लक्षित है कि मनुष्य के योग्य कार्य क्या है और उसे किस प्रकार के मार्ग का अनुसरण करना चाहिये । और इन्ही साधनो के अपनाने से मानव कैसे महानता को प्राप्त करता है । वसुदेव का जीवन चरित्र ही देखिये जो पूर्व जन्म मे एक दरिद्र और निराश्रित व्यक्ति थे जिसे कोई भी सम्मान देने को तैयार न था । और तो क्या उसके कुटुम्बी भी उससे घृणा करते थे । अन्त मे ऐसे दुखी जीवन से छुटकारा पाने के लिये उतारु हो गये थे । दैवयोग से एक आध्यात्मवादी का सहयोग हुआ और श्रात्मसाधना मे लीन हो गये । उन्होने सर्व
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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