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क्रियायो तथा व्रतो मे उच्च सेवाव्रत को जीवन मे स्थान दिया और स्वर्गगामी हुये। वहाँ से मनुष्य रूप मे फिर इस कर्म भूमि पर जन्म लिया और उन्ही पूर्व जन्म के सचित कर्म फल के द्वारा श्रीकृष्ण जैसे यशस्वी पुत्र के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और आगे मोक्ष के अधिकारी बने।
दूसरी ओर जरासघ व नशसी कस के जीवन चरित्र पर भी दृष्टिपात करे जिन्होने मानवता के स्थान पर दानवता, नम्रता के स्थान पर अभिमान, मृदुता के स्थान पर कठोरता, करुणा के स्थान पर निर्दयता, अधिकार तथा भोगलिप्सा प्रादि राक्षसी वृत्तियो को जीवन मे स्थान दिया। तीन खण्ड पर छाया हुआ प्रभुत्व तथा शारीरिक वीरता प्रादि वलो द्वारा दूसरो पर जमाया हुआ पातक एव मिले हुये जीवनोपयोगी साधन उनकी दुरुपयोगिता के कारण उनके ही जीवन के घातक बन गये। क्योकि अपने तनिक से स्वार्थ के लिये बाल-हत्या प्रादि ही जीवन के घातक बन गये । क्योकि अपने तनिक से स्वार्थ के लिये वाल हत्या आदि उग्र अत्याचार, अन्य राज्यो की लूट, और अनधिकार चेष्टा जैसे कुकृत्य करते हये श्रीचित्य का विचार तक भी न पाया । इसी कारण आज उनका नाम मानव इतिहास की श्रेरिण से पतित हो रहा है।
किन्तु ठीक इसके विपरीत वसुदेव देवकी को भी देखे जिन्होने कस को दिये हुए अपने एक साधारण वचन मात्र की रक्षा के लिये अपनी आँखो के सामने सन्तति-हत्या को सहन किया।
कौरव पाण्डवो के जीवन क्रिया में पाया जाने वाला अन्तर भी इस सिद्धान्त को प्रमाणित करता है कि सत्य, धैर्य, न्याय, अधिकार रक्षा तथा परोपकार गुण ही जीवन को उत्कर्प की ओर ले जाने वाले हैं और इसी मे ही जीवन मे शान्ति, सतोप और सफलता प्राप्त होती है । इनके विपरीत दम्भ, गर्व, अन्याय, पराधिकार हडपने की चेप्टा, ईर्ष्या, प्रतिगोष, राज्य लोभ जैसी वृत्तियो से नही । यही
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