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१४ प्रबलता मानसिक वृत्तियों पर अधिकार कर लेती है । और आध्यात्मिक साधना उस महानता का ससार बनाती है, जो शम, दम परमार्थ आदि गणों और अलौकिक ज्योति को प्रसारित कर अपूर्व आनन्द की नदी प्रवाहित करती है जिस से आगे चलकर अखड शान्ति व अक्षय सुख की प्राप्ति होती है । किन्तु दोनो आध्यात्मिक तथा भौतिक मार्गों का द्वन्द्व आज ही नही अनादि काल से चला आ रहा है। दोनो ही अपने सिद्धान्तो को कल्याणकारी बताते है। इन दोनो के बीच होने वाले सवाद का सग्रह साहित्य मे पाया जाता है । सम्पूर्ण साहित्य इन दोनो की विशेषताओ, व्यक्तित्वो, समर्थनो और साधको को जीवनोपयोगी गाथारो के रूप मे भरा पड़ा है। और इसी आधार पर साहित्य के दो विभाग हुए है, आध्यात्म और भौतिक ।
आध्यात्म साहित्य में जीवन क्या है, कैसे कैसे पर्यायो मे परिवर्तित हो जाता है, उसका अन्तिम ध्येय और लक्ष्य क्या है, उसके साधना मार्ग कितने है, उससे जीवन पर क्या प्रभाव पडता है, आदि बाते बताई गई है । तथा साथ साथ अनुभव गम्य व जीवन के चरम लक्ष्य को प्राप्त करने वाले साधको ऋषि महर्षियो के जीवन वृत्त भी है जो आत्म साधना का मूक सदेश देते रहते है । दूसरी और भोतिक साहित्य मानव को सासारिक जीवन आवश्यकताओ तथा शारीरिक बल, रूप, सैन्य शक्ति पारिवारिक बल तथा कूटनीतिज्ञता आदि तथा सुख सुविधा के साधन मार्ग का ज्ञान कराता है।
ससार मे भौतिक मतावलिम्बयो की बाहुल्यता भले ही हो किन्तु जीवन को स्थायी शान्ति और सतोष प्रदाता आध्यात्मिक ज्ञान ही मानव जीवन को उत्कर्ष की ओर प्रेरणा देता है। और इसी के परिणाम स्वरूप उसमे दानव से मानव, दुखी से सुखी, बधन से मुक्त, स्वार्थ से परमार्थ की ओर ले जाने वाली एक महान शक्ति निहित है। और अन्ततोगत्वा महान् भौतिकवादियो को भी