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आत्म-निवेदन मानव जीवन महान् है, इसमे अनन्त पुरुषार्थ, अनन्त ज्ञान, दर्शन तथा अन्य महा शक्तियाँ निहित है। यह बात तो निर्विवाद व अक्षरश सत्य है, फिर आज विज्ञान ने भी प्रमाणित कर दिया है कि मनुष्य मे किसी भी महान कार्य के सम्पन्न करने को पूर्ण क्षमता है । किन्तु जब तक वह उन अपनी सुप्त शक्तियो को जागृत नही कर लेता अथवा उनको कार्य रूप में परिणित व जीवन साधना के लिये साधनो का मूर्त रूप नही दे देता तब तक वे उनके लिये नगण्य ही हैं। उसमे कार्य करने की क्षमता उसी घडी तक नही आती जब तक कि हृदयस्थ धैर्य उत्साह, सहिष्ण ता आदि तत्वो का उदय भाव नहीं हो जाता । क्योकि कार्य-पूर्ति के लिये शारीरिक बल ही पर्याप्त नही किन्तु उपरोक्त गुणो की भी परम अनिवार्यता है । शारीरिक बल के होते हुए यदि आभ्यन्तर बलो का अभाव हो जाता है तो वाह्य बल का कुछ मूल्य नहीं रहता। और उपरोक्त तत्वो के होते हुये शरीर बल पूर्ण न भी हो तब भी व्यक्ति शनै शनैः अपनी साधना करते करते सिद्धि को प्राप्त कर लेता है।
इस सिद्धि और साधना के दो रूप हैं-एक आध्यात्मिक और । दूसरा भौतिक । आध्यात्मिक साधना और उसके साधन कठोर होते
हुए भी सदा शात तथा सतोषदायक रहे है जब कि भौतिक साधना के सावन आत्मा को शान्ति तथा सतोष प्रदान करने में असमर्थ हैं । और यही कारण है कि वर्तमान युगीन भौतिक मार्ग मानव को अशान्त बना देता है । क्योकि स्वार्थ, फलाकाक्षा तथा कषायो की