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चारुदत्त की आत्मकथा
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भी यहां पडते जाते । शत्रु को लेकर कोई ऐसे सुन्दर प्रदेश में आयेगा ही कौन ।
हरिसिंह ने पूछा-यदि चिन्ह किसी का इन में नहीं तो फिर और किस का है ?
गौमुख ने उत्तर दिया, किसी स्त्री का ?
हरिसिंह ने कहा, स्त्री का भार कदापि नहीं हो सकता क्योंकि विद्याधरियॉ तो स्वय भी आकाश गामिनी होती है।
गोमुख ने कहा, इस विद्याधर की प्रिया कोई मानवी है। यह इस के साथ इस सुन्दर स्थान में फिरता होगा। । हरिसिंह ने पूछा कि यदि कोई मानवी विद्याधर की प्रिया है तो वह उसे भी यह विद्या क्यों नहीं सिखा देता। ___ गोमुख ने समझाया-यह विद्याधर बडे ईर्ष्यालु होते हैं। साथ ही इनको किसी पर भी विश्वास नहीं होता । इसलिये ये किसी को अपनी विद्या नहीं देते। यहां तक कि अपनी प्रिया को वह अपनी विद्या नहीं सिखाना चाहते ।क्योंकि उन्हें शका रहती हैं कि यदि इनको आकाशगामिनी विद्या आ गई तो कहीं ये स्वच्छन्द हो जायें । साथ ही उसने यह कहा कि वह विद्याधर यहीं कहीं वृक्ष लता कुञ्जो में होगा क्योंकि उसके पद चिन्ह बिल्कुल नवीन से है इसलिए आगे बढ़कर इस की खोज करनी चाहिये। ___ इस प्रकार ढूढते-ढू ढते आगे चलकर हमें चार पद चिन्ह दिखाई दिये । निश्चित ही उनमें से दो स्त्री के और दो पुरुष के थे। अब हम इन पद चिन्ह का अनुसरण करते-करते आगे बढ़े। कुछ दूर जाने पर विकसित पुष्प समूहों पर मंडराते हुये भ्रमरों से सुशोभित एक सप्तपर्ण वृक्ष दिखाई दिया। उस वृक्ष के ताजे टूटे। हुये पुष्प गुच्छ को देख कर गोमुख ने कहा कि "देखिये इस टूटे हुये फूल की डडी से दूध भर रहा है। इससे ज्ञात होता कि उस विद्याधर ने अभी-अभी यह पुष्प स्वत तोडा है। ____ यहाँ से थोड़ी दूर सामने एक परम मनोहर लता मंडप दिखाई दे रहा था। वह देखो वह लता मडप बड़ा सुन्दर व एकान्त होने के कारण उपभोग योग्य प्रतीत होता है। हो सकता है विद्याधर अपनी प्रिया के साथ उसी में विद्यमान हो। किन्तु इसी समय उस लता