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जैन महाभारत मडप में से एक सुन्दर मोर निकला उसे देखकर सबने निश्चय किया कि नहीं इस समय उस मडप मे कोई नहीं है। यदि वहाँ कोई व्यक्ति होता तो यह मोर इस प्रकार निर्भय और निश्चिन्त गति से चलता हुआ लता मडप से बाहर न आता । इसको गति में थोड़ी बहुत आकुलता अवश्य लक्षित होती। तब हम सब लोग लता मडप मे जा पहुचे । वहा जाकर हमने देखा कि नवीन पुष्पो से निर्मित रमणीय कुसुम शैया बिछी हुई है।
दूसरी ओर देखने पर एक ढाल और रत्नकोश पड़े हुये मिले । साथ ही कुछ ऐसे स्पष्ट चिन्ह भी थे जिनसे निश्चय हुआ कि अवश्य ही किसी दुष्ट ने विद्याधर को दबोचा है । वह उससे लड़ता झगड़ता
और आत्म रक्षा का प्रयत्न करता हुआ यहाँ से कहीं आगे बढ़ गया। इसलिये उसका अनुसरण करते हुये हम लोग भी और आगे चल पड़े। कुछ दूर जाने पर एक व्यक्ति कदम्ब वृक्ष के साथ बन्धा हुआ दिखाई दिया। उसके पांचो अंगों मे कील ठोककर उसे वृक्ष से इस प्रकार जकड़ दिया था मानों पांचों इन्द्रियो के विषय को पाच अन्तरायों ने व्याप्त कर लिया हो । एक कीला उसके मस्तक मे ठोका हुआ था। दो दोनों हाथों में और दो दोनों पावों मे इस प्रकार पांच कील ठोककर उसे वृक्ष मे जकड़ा हुआ था । उसकी ऐसी दशा देख हमारे हृदय द्रवित हो उठे । पर थोड़ा ध्यान से देखने पर लक्षित हुआ कि ऐसी भयकर पीडा सहते हुए भी उसके मुख मडल की कान्ति वैसी ही उज्जवल थी उसमे कही भी विवर्णता का लेश भी न था । उसके अगो पर कील ठुके रहने पर भी रक्त नहीं वह रहा था। तीव्र पोड़ा का अनुभव करते हुये भी उसके श्वासोच्छवास निरतर चल रहे थे। तब एकात'वृक्ष की छाया में बैठे हुए अपने मित्रो से मैने कहा।
उस विद्याधर को इस अवस्था मे देख मैंने कहा कि मैंने बचपन में विद्याधरों का वृत्तान्त साधुओ के मुख से सुना था कि विद्याधर अपनी थैली में अपनी रक्षा के लिए चार ओपधियाँ भी रखते है । सो सम्भव है इस विद्याधर की थैली में भी वे चारो औपधियाँ हों, किन्तु देखने पर उन्हें यह पता न लग सका कि इनमे से कौनसी औषधि किस काम आती है। क्योकि चालक नामक औषधि घायल व्यक्ति को चलने फिरने के योग्य बना देती है। उत्कीलन नामक औषधि से कील कॉटे अपने