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सरण उनका शरीर व
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जैन महाभारत चिन्ह किसके हो सकते है ।" इस पर गोमुख कुछ सोचकर बोला "निश्चित ही यह तो किसी आकाशगामी के पद चिन्ह हैं । तव हरिसिंह ने पूछा कि "आकाशगामी ता बहुत से हैं देव, चारण श्रमण, ऋद्धि मान ऋपि और राक्षस आदि इन में से यह किसके है । यह भी तो सोचना चाहिये।"
देवताओ के पद तो पृथ्वी से चार उगल ऊपर पडते है । वे भूमिका कभी स्पर्श नहीं करते, राक्षसों के शरीर बडे स्थूल होते है इसलिए उनके पाव भी बहुत बड़े-बडे हाते है, ऋपि मुनि बडे तपस्वी होते है । तप के कारण उनका शरीर बड़ा कृश ओर दुर्बल हो जाता है, उनके पद चिन्ह मध्य भाग से कुछ ऊचे उठे रहेगे और साथ ही हमारे जल के किनारे चलने से किसी जलचर प्राणी को कोई वाधा न पहुचे, इस विचार से चारणश्रमण जल के किनारे चलते भी नहीं अतः इनमें से किसो के भो पद चिन्ह नहीं हो सकते 'गोमुख ने कहा __यदि इनमे से किसी के नहीं तो फिर यह "किसके पांव है ? हरिसिंह ने पूछा।"
गोमुख ने उत्तर दिया किसी विद्याधरी के । हरिसिंह ने कहा हो सकता है विद्याधरी के हो ।
गोमुख ने उत्तर दिया पुरुष बलवान होने के कारण उत्साह पूर्वक चलते हैं। उनके वक्षस्थल के विशाल होने के कारण उनके पाव आगे से दबे हुए होते हैं । पर स्त्रियों के पुष्ट नितम्बों के कारण उनके पद चिन्ह पीछे से दबे रहते है।
इस लिये ये पदचिन्ह विद्याधर के नहीं; प्रत्युत विद्याधर के ही है। एक बात और भी है कि इस विद्याधर के पास कोई बहुत बड़ा भार भी प्रतीत होता है।
तब हरिसिंह ने पूछा, क्या इस पर किसी पर्वत का भार है या किसी वृक्ष का अथवा इसने किसी का अपराध किया हो और वह मौका देख । कर इसके सिर पर जा चढ़ा हो उसका भार है। ।' गौमुख ने कहा, यदि इसके पास पर्वत शिखर होता तो उसके
अत्यधिक भार के कारण यह पद चिन्ह खूब दबे हुए होते। कोई वृक्ष होता तो उसकी शाखाये पृथ्वी पर रगड़ती जाती और उसके निशान